Book Title: Sadhvi Vyakhyan Nirnay
Author(s): Manisagarsuri
Publisher: Hindi Jainagam Prakashak Sumati Karyalay

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Page 60
________________ क लावी व्याख्यान निर्णयः तीर्थ श्री कापरड़ाजी ताः ६।५४२ श्रीमान उपाध्यायजी श्री मणिसागर जी महाराज- मु० जयपुर सादर वंदना पश्चात् विदित हो कि आपका पत्र तारीख २६-४-४२ का लिखा हुआ ता. ५-५-४२ को रजिस्टर द्वारा मिला। पत्र पढ़ने से सब हाल मालूम हुआ। पर यह समझ में नहीं आया कि एक ओर तो आपने मित्रता पूर्वक पत्र लिखा है और दूसरी ओर पन्द्रह दिनों की धमकी दी है। खैर मैंने आपके पत्र का जवाब मित्रता के नाते दिया न कि धमकी के डर से । श्रागे ट्रेक्ट भेजने के विषय में आपने लिखा कि हम और हमारे साधु या श्रावकों को नहीं देते हो इत्यादि । पर ऐसी बात नहीं है ट्रेक्ट निकला तो सबसे पहले फलौदी एवं अजमेर वालों को ही भेजा था। कि जिन्हों के कारण लिखा गया था बाद बीकानेर जोधपुरादि अन्य स्थानों में भेजा गया था। यदि आपको न मिला हो तो बात दूसरी है। खैर आज मैं मेरा लिखा ट्रेक्ट डाक द्वारा भेज रहा हूं। शेष के लिये कोशिश करूंगा । आगे साध्वी के व्याख्यान के विषय में आपने भी वायदा कापरङाजी में किया था कि मैं मेरे शेष लेख आपको भेज दूंगा। वो आज पर्यन्त नहीं मिले हैं। यदि आप अपने लेख मेज दिखायें तो मैं उन लेखों का उत्तर लिख कर मेरे लेख में शामिल कर आप को भिजवाने का प्रयत्न करूंगा । अजमेर की दादावाड़ी के विषय में मैंने श्रापको कापरड़ाजी में कहा था कि लेख देखने के बाद मैंने करीबन दस मास तक समाधान की कौशिश की। पर उसमें सफलता नहीं मिली। इतनाही क्यों पर फलौदी से आपके साधुओं द्वारा ऐसा जवाब मिला कि - जिससे लाचार हो मुझे ट्रेक्ट लिखना पड़ा जो आज की डाक से आपको भेजवाया जा रहा है । बाद कापरड़ाजी में आपका मिलाप एवं वार्तालाप हुआ। तथा जब मैं फलौदी गया तो एक सज्जन ने विश्वास दिलाया कि मैं समाधान की कोशिश करूँगा बस इस विश्वास पर फिलहाल लिखा पढ़ी बंद करदी है । आगे आपने यह भी लिखा है कि लेख विज्ञापन के रूप में व जाहिर पत्रों छुपाने का विचार किया था। पर आपकी मित्रता के कारण न छपवा कर आपको मेजा है । यह आपकी महेरबानी है । मैं भी शान्ति का इच्छुक हूं । फिर भी विज्ञापन आदि छपा नेवाला तथा उसका जवाब देने वाले स्वतंत्र हैं Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat भवदीयज्ञानसुन्दर www.umaragyanbhandar.com

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