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साध्वी व्याख्यान निर्णयः
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बिनय भक्ति करेगी । साध्वियों में विशेष पढाई न होने से अज्ञानता के कारण अभिमान होता है और उससे उचित विनय, विवेक बुद्धि भी नहीं होती, जिससे ही अनपढ साध्वियों में विशेष करके विनय भक्ति का व्यवहार कम दिखाई देता है अतः साध्वी समुदाय में विशेष पढाई करने की अधिक आवश्यकता है । शान वृद्धि होने पर सद्-विवेक आवेगा, जिससे अपना और दूसरों का उपकार अच्छी तरह से हो सकेगा । जिस समुदाय में साध्वियों में विशेष पढाई करने का प्रचार अधिक होता है । उस समुदाय का संप भी अच्छा रहता है, व्याख्यान आदि भी हजारों लोगोंके समुदाय में बांच सकती हैं धर्मोपदेश द्वारा अनेक जीवों को धर्म कार्यों में प्रवृति कराती हैं। जिस समुदाय में पढाई का प्रचार अधिक होगा उस समुदाय में विनय विवेक, लघुता आदि प्रत्येक गुणों की वृद्धि होगी, जिस समुदाय में पढाई का प्रचार अधिक नहीं होगा, उसं समुदाय की साध्वियाँ निन्दा विकथा प्रमाद आदि कर्म बन्धन के कार्यों में अपना और दूसरों का समय बरबाद करेंगी जिससे न तो अपना आत्मकल्याण होगा और न दूसरों की आत्मा का परोपकार भी हो सकेगा जो लोग साध्वियों को अधिक पढने का विरोध करके शान की अन्तराय करते हैं उन्होंको झानावर्णीय कर्मों का बंध होगा इसलिए साध्वियों को पढ़ने से रोकना उचित नहीं है।
५०-अगर कहा जाय कि साधियाँ व्याख्यान यांचने लग जावेंगी तो साधुओं की अवज्ञा होगी, यह म केवल भ्रम है, क्योंकि देखो-कभी कोई गुरू साधारण बुद्धिवाला होता है और उनका शिष्य अधिक बुद्धिवाला शास्त्रों का ज्ञाता-गीतार्थ बनता है, योग्यता प्राप्त होने से गुरू और संघ मिलकर उनको आचार्य बनाते हैं, वेही आचार्य हजारों लोगों को धर्मोप. देश द्वारा प्रतिबोध देते हैं, जिससे उनकी और उनके दीक्षागुरु की शोभा होती है परन्तु गुरु की अवज्ञा कमी नहीं हो सकती इसही तरह से यदि पढ़ी लिखी विदुषी साध्वी व्याख्यान बांचकर गाँव गाँव में लोगों को प्रतिबोध देकर धर्म की प्रभावना करेंगी तो उससे साधु की अवक्षा कमी नहीं होगी किन्तु यडी शोभा होगी ; लोग कहेंगे अमुक समुदाय में साध्वियें कैसी बुद्धिवाली अच्छी पढ़ी लिखी हैं और कैसा अच्छा व्याख्यान बांचती हैं, कैसा २ उपकार करती हैं, धन्य है उस समुदाय को कि जिसमें ऐसी २ साध्वियाँ भी मौजूद है इस प्रकार व्याख्यान यांचने में साधुओं की प्रवक्षा नहीं और न किसी प्रकार धर्म की हानि ही है ! किन्तु महान शोभा और लाभ का कार्य है। ___ इतनी बात अवश्य है कि जिस गाँव में शुद्ध आचारपाला साधु मौजूद हो वहाँ पर साध्वयों को व्याख्यान बांचना उचित नहीं, परन्तु बडे शहरों में विशाल जैन समुदाय में साधु साध्वियों के अनेक उपाश्रय हो वहाँ पर साधु होने पर भी यदि श्रोताओं की भावना होतो वहाँ पर साध्वियाँ व्याख्यान बांचे तो कोई हानि नहीं और गाँवों में भी अगर कोई साधु भ्रष्टाचारी होने पर साध्वी व्याख्यान यांचे तो बांच सकती हैं, इससे पुरुष प्रधान धर्म में कोई हानि नहीं हैं।
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