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साध्वी व्याख्यान निर्णयः
के आराधक होते हैं। यह बात शास्त्रानुसार सर्वमान्य प्रत्यक्ष सत्य है। इस ही के अनुसार साध्वी भी भव्यजीवों के आगे उनके हितकारी उपकार करने वाली शुद्ध भाषा समिति सहित सूत्रार्थ का व्याख्यान सुनावें तो वह साध्वी भगवान् की आज्ञा की आराधक ठहरती है। जिसपर भी जो महाशय साध्वी को धर्मोपदेश देने की मनाई करते हैं, वे लोग प्रत्यक्ष ही शास्त्रों की बातों का उत्थापन करने वाले ठहरते हैं।
३१-साध्वियों को केवलज्ञान प्राप्त करके मोक्ष में जाने वाली मानते हैं तब क्या साध्वी का व्याख्यान मोक्ष से भी अधिक महत्व का है ? कि-जिसका निषेध करते हैं। यहा निषेध करने वालों की बुद्धि पर हमें दया आती है कि वे साध्वियों को अनन्त ज्ञानी और मोक्ष प्राप्ति करने वाली मानकर भी उनको भव्यजीवों के आगे उपदेश देने का निषेध करते हैं । पुरुष प्रधान धर्म मानकर भी साध्वियों का व्याख्यान बांचने का अनादि सिद्ध अधिकार है । उसको निषेध करना किसी प्रकार भी उचित नहीं है।
३२-जैन शासन में पुरुष प्रधान धर्म होने से शास्त्रों में जगह जगह पर साधु के नाम से जो जो क्रिया की बातें बताई हैं उसके अनुसार साध्वियों के लिए भी यथायोग्य वेही क्रिया की बातें समझ लेनी चाहिये । जैसे-श्रमणसूत्र में “चउहिं विकहाहिं इत्थिकहाए, भत्तकहाए, देसकहाए, रायकहाए” इस पाठ में साधु के लिए स्त्रीकथा का निषेध किया है और येही पाठसाध्वियाँ भी बोलतीं हैं तब “इथि कहाए" के स्थान में पुरुषकथा न करने का अर्थ लिया जाता है, इसी प्रकार श्रावक के “वन्दित्ता" सूत्र में भी "चउत्थे अणुव्वयंमि निच्चं परदारगमणविरईओ" इस पाठ में श्रावक के चौथे अनुव्रत में हमेशा परस्त्री का त्याग बताया है, और येही पाठ श्राविकायें भी बोलती हैं, उनके लिए चौथे अनुव्रत में हमेशा पर पुरुष के त्याग करने का अर्थ समझ लिया जाता है, इसही प्रकार जहाँ जहाँ साधु श्रावक के लिए जो जो अधिकार आये हों वहाँ वहाँ साध्वी तथा श्राविका के लिए भी यथा योग्य समझ लिये जाते हैं, इस न्यायानुसार जिस शास्त्र में साधु के लिए धर्मदेशना देने का विधान आया हो उसके अनुलार ही साध्वी के लिए भी धर्मदेशना देने के लिए उन्हीं प्रमाणों को उसी अधिकार का समझ लेना चाहिए। ___३३-फिर भी देखिये-अन्य दर्शनीय लोगों ने जब कई तरह के नियम बनाकर वेद पढ़ने आदि के स्त्रियों के स्वाभाविक अधिकार छीन लिए थे और उन्हों को अपने नीचे दबा रक्खा था. कई बातों में सर्वथा परवश बना दिया था तब उस परवशता का नाश करके श्री महावीर भगवान् ने स्त्रियों को पंच महाव्रत-संयम लेना, अग्यारह अंग आदि मूल आगमों को पढ़ना, स्वाध्याय करना और अपना संयम पालन करते हुए यावत् मोक्ष पहुँच ने तक को पुरुषों के समान अधिकार बतलाया है। ऐसे उदार और न्याय संपन्न सर्वश
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