Book Title: Sadhvi Vyakhyan Nirnay
Author(s): Manisagarsuri
Publisher: Hindi Jainagam Prakashak Sumati Karyalay

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Page 42
________________ साध्वी श्याख्यान निर्णयः ने महिला समाज को उपदेश दिया था अतः साध्वी स्त्री समाज को उपदेश देकर उनका कल्याण करे उसमें सब संसार का भला है।" इस लेख में निरियावलका सूत्र और शातासूत्र के प्रमाण से साध्वियों को श्राविकाओं के सम्मुख धर्मदेशना देने की आशा स्वीकार करते हैं, इस प्रमाण से जीवानुशासन ग्रन्थ के उपरोक्त प्रमाण से सर्वथा एकान्तरूप से साध्वियों को धर्मदेशना देने का निषेध मिथ्या ठहरता है, जिस प्रमाण को आप बडी शूरवीरता से पेश करते हैं, उसी बात को आप अपने लेख से अप्रमाणित साबित करते हैं, जब साध्वियों के लिए स्त्रियों की सभा में धर्मदेशना देना मंजूर करते हैं, तब धर्मदेशना का सर्वथा निषेध करना व्यर्थ ठहरता है । तथा स्त्रियों को धर्मदेशना सुनाना और पुरुषों को नहीं सुनाना या पुरुषों को नहीं सुनने देना ऐसा किसी भी शास्त्र का प्रमाण नहीं हैं, परन्तु-स्त्री पुरुष दोनों एक साथ मिलकर साध्वी की धर्मदेशना सुन सकते हैं । इस विषय में हम ऊपर अनेक प्रमाण बतला चुके हैं । इसलिए साध्वी को धर्मदेशना देने का निषेध करनेवाले बडी भूल करते हैं। ४८-जैन शासन में साधु, साध्वी, श्रावक और श्राविका इस प्रकार चतुर्विध संघ की स्थापना तीर्थकर भगवान् करते हैं, संघ का मुख्य कर्तव्य तप-संयम स्वाध्याय द्वारा प्रात्मकल्याण करना, आत्मकल्याण के साथ २ दूसरे भव्य जीवों को धर्मोपदेश से धर्म प्रवृत्ति कराकर परोपकार करना । धर्मदेशना स्वाध्याय में समझी जाती है, स्वाध्याय करना चारों प्रकार के संघ का खास कर्तव्य है। इस बात का भावार्थ समझनेवाले और जो शास्त्र प्रमाण हम ऊपर में बतला आये हैं, उन्हों को समझनेवाले कोई भी सज्जन साध्वी को धर्मदेशना देने का निषेध नहीं कर सकते, जिसपर भी ज्ञानसुन्दरजी आदि जो महाशय साध्वी की देशना का निषेध करने के लिए बडा आग्रह कर रहे हैं, उन लोगोंका साध्वियोंके प्रति द्वेष मालूम होता है, क्योंकि खुद व्याकरण पढे नहीं, सूत्रों की टीका का व्याख्यान सभा में नहीं कर सकते और कई अच्छी पढी लिखी साध्वियाँ सूत्रों की टीका का सभा में व्याख्यान बांचती हैं, उनका प्रभाव भी समाज में अच्छा पडता है, यह बात साध्वी समाज के द्वेषियों से सहन हो नहीं सकती इसलिए साध्वी समाज की निन्दा बुद्धि में उनको नीचा दिखाने के लिए और अपना मिथ्या घमण्ड रखने के लिए साध्वी के धर्मदेशना का निषेध करते हैं और भद्र जीवों को उन्मार्ग में डालने के लिए कई प्रकार की कुयुक्तियाँ करते हैं। उन कुयुक्तियों का समाधान यहाँ पर लिखते हैं। ४९-अगर कहा जाय कि-साध्वी अधिक पढेगी, व्याख्यान बांचेगी तो उसको अभिमान पाजावेगा और साधु का अनादर करेंगी, इसलिए साध्वी को अधिक पढना, व्याख्यान बांचना योग्य नहीं । ऐसा कहना भी अनुचित है। क्योंकि देखो-अगर साध्वी अधिक पढेगी, ज्ञान वृद्धि होगी तो उससे सद्विवेक श्रावेगा जिससे साधुओं की बहुमान पूर्वक Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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