Book Title: Sadhvi Vyakhyan Nirnay
Author(s): Manisagarsuri
Publisher: Hindi Jainagam Prakashak Sumati Karyalay

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Page 27
________________ साध्वी व्याख्यान निर्णयः किसी बडे स्थान में बडे पुरुषों के पास जाना होता है तब पहिले शिष्टाचार की अच्छी अच्छी बातें किये बाद में फिर जिस उद्देश्य से गये हों उस विषय की बातें निकाली जाती हैं। इसही तरह से सुब्रता साध्वी भी नमिराजा की फौज में गई जब राजा ने साची को बन्दना करके बैठने के लिए आसन दिया और आप हाथ जोड़ कर सामने भूमि पर बैठ गया। तब साध्वी ने पहिले धर्मदेशना दी और देशना के अन्त में युद्ध न करने का उपदेश दिया इसही लिए शास्त्रकारों ने “उपदेशान्ते चोक्तं", "आर्यापिधर्ममाख्याय","कुशलकेशनाम्" और "धम्मकहावसाणे भणियं” इत्यादि वाक्यों में धर्मदेशना देने का अधिकार पहिले बतलाया है इससे प्रगटतया हर एक साध्वी को व्याख्यान बांचने का अधिकार उपर में बतलाये हुए शास्त्रों के प्रमाण से सिद्ध है। २२-दूसरी बात यह है कि- “बुद्धीहि य बोहिया मणुस्सा केवला मिस्सा वा" "सिद्धप्राभृत" का यह पाठ ऊपर बतला चुके हैं, इस पाठ में साध्वियाँ केवल अकेले पुरुषों को अथवा स्त्री-पुरुष दोनों को धर्मोपदेश दे सकती हैं, तथा “श्राद्धी मिश्रितानां कारणे केवलानाम् च पुरस्सादुपदेशः" यह "सेन प्रश्न" का पाठ भी ऊपर बतला चुके हैं। इसमें भी यही बतलाया है कि-साध्वियाँ स्त्री-पुरुषों की सम्मिलित सभा में और कारण वस केवल पुरुषों की सभा में भी धर्मदेशना दे सकती है, यह नियम शास्त्रानुसार है और सुबता साध्वी ने भी खास युद्ध का कारण उपस्थित होने पर नमिराजा के समक्ष में पुरुषों की सभा में देशना दी है। इसलिए उत्तराध्ययन सूत्र की टीकाओं के पाठों के अनुसार जो कि उपर लिख चुके हैं उस मुआफिक सुब्रता साध्वी की तरह सब साध्वियों को धर्म देशना देने का अधिकार सिद्ध होता है, और इसही के अनुसार सब साध्वियें भी धर्मदेशना दे सकती हैं तथा "कुशलदेशनाम्" "आर्यापिधर्ममाख्याय" “उपदेशान्ते चोक्तं" "धम्मकहावसाणे भणियं" आदि उपर्युक्त विशेषण ही साध्वियों के लिए धर्मदेशना का अधिकार सिद्ध करते हैं । यहाँ देशना कहने से सभा में धर्मोपदेश का व्याख्यान समझना चाहिये। २३-जिस तरह सुब्रता साध्वी ने अपने गृहस्थावस्था के पुत्र के उपर अनुकंपा करके युद्ध की हिंसा के पाप से उसको बचाया और अनेक जीवों का उपकार किया, इसी तरह से पंच महाव्रत धारी संयमी साध्वीयों के भी धर्म पक्ष में श्रावक-श्राविकायें पुत्रपुत्रियों के तुल्य हैं । उन्हों के उपर साध्वियों उपकार बुद्धि से अनुकम्पा लाकर उन्हों को आश्रव-कषाय आदि के पाप से बचाने के लिए और धर्म मार्ग में व्रत नियम करने की प्रवृति कराने के लिए अवश्य ही व्याख्यान वांच कर सद्बोध का धर्मोपदेश दे सकती है। इसमें किसी प्रकार अंतराय देना योग नहीं है । देखिये- शास्त्रों में कहा है कि भगवान की वाणी के सद्बोध का एक भी वचन धारण करने वाले भव्य जीवों को महान् लाभ होता है। और साध्वियों व्याख्यान वांच कर गाँवों गाँवों में प्रति वर्ष लाखों जीवों को भगवान् की Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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