Book Title: Sadhvi Vyakhyan Nirnay
Author(s): Manisagarsuri
Publisher: Hindi Jainagam Prakashak Sumati Karyalay

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Page 26
________________ १४ साध्वी व्याख्यान निर्णयः " प्रणम्य तां नमिद्धाञ्जलिर्दत्तासनोऽविशत् । तत्पुरो भुवि साप्युच्चैस्तेनं कुशलदेशनाम् ॥ १२६ ॥ इस पाठ में भी साध्वी के सामने राजा हाथ जोडकर बैठा तब साध्वी ने कुशल देशना दी अर्थात्-अच्छी देशना दी धर्म का व्याख्यान दिया। यहां यह बात खुलासा है कि ऊपर के पाठ में राजा के आगे देशना देने का कहा है, परन्तु वहां राजा अकेला नहीं था। अनेक जन थे। सब के सामने साध्वी ने धर्म देशना का व्याख्यान सुनाया और देशना के अन्त में राजा को युद्ध बंद कर देने का उपदेश दिया है । २० - इसी तरह से संवत् १९२९ में वृहद्गच्छीय श्री नेमिचन्द्र सूरिजी की बनाई हुई "सुखबोधा" नामा टीका जो कि आत्मवल्लभस्मारकग्रन्थमाला से प्रकाशित हुई है। पृष्ट १४०-१४१ में ऐसा पाठ है "लोगपारंपरओ निसुयं सुव्वयज्जाए। चिंतियं च मा जणवयक्वयं काऊण अहरगईं वच्चंतु, ता दो वि गंतॄण उवसमावेमि । गणिणीए अणुन्नाया साहुणिसहिया गया सुदंसणपुरं । दिट्ठो य अजाए नमिराया । दिन्नं परममासणं । वंदिऊण नमी उबविट्ठो धरणीए । साहिओ अजाए असेससहकारओ जिनिंदणीओ धम्मो । धम्मकहावसाणे भणियं - महाराय ! असारा रज्जसिरी, विवागदारुणं विसयसुहं, अदुक्खपउरेसु विरुद्धपावयारीणं नियमेण नरएसु निवासो हव । " सबसे प्राचीन इस टीका में भी यही बात बतलाई गई हैं कि- साध्वी ने राजा के आगे सम्पूर्ण सुख देनेवाला श्री जिनेन्द्र प्रणीत धर्म कहा अर्थात् धर्मदेशना दी तथा देशना के अन्त में फिर राजा को युद्ध न करने का उपदेश दिया ! इस प्रकार बृहद्गच्छीय, खरतरगच्छीय, तपगच्छीय आदि सब टीकाओं में साध्वी के व्याख्यान देने का और फिर राजा को युद्ध न करने का अलग-अलग खुलासा बतलाया है। २१ – अगर कहा जाय कि- नमिराजा सुव्रतासाध्वी के संसारी पुत्र था और वह बड़े भाई के साथ युद्ध करने को गया था, इसलिए साध्वी उनको युद्ध न करने के लिए समझाने को गई थी, इस प्रमाण से हरेक साध्वी को व्याख्यान बांचने का अधिकार साबित नहीं हो सकता । यह कथन भी उचित नहीं है क्योंकि देखो - बृहत्कल्प, सिद्धपंचासिकावचूर्णी, नन्दीसूत्र की टीका, सिद्धप्राभृत आदि अनेक प्राचीन शास्त्रानुसार और श्री हीरविजय सूरिजी आदि के ग्रन्थानुसार साध्वी को व्याख्यान बांचने का अधिकार सिद्ध कर आये हैं और यह एक प्रकार का प्रसिद्ध शिष्टाचार भी है। किसी उद्देश्य के लिए Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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