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साध्वी व्याख्यान निर्णयः
न केवल पुरुषाणां माध्व्यो धर्मकथा कथयन्तीति । गायाछन्दः ।। ११६ ॥
अर्थः-वृद्ध हो या जवान हो केवल पुरुषों के सामने दिन में अथवा रात्रि में गणिनी अर्थात्- वृद्ध साध्वी धर्म कथा कहे- धर्म उपदेश देवे तो वह साध्वी गच्छ की प्रत्यनीक (विरोधक) होती हैं। यहाँ पर गणिनी कहने से अन्य सामान्य साध्वियों का ग्रहण कर लेना चाहिये । अर्थात्-कोई भी साध्वी केवल अकेले पुरुषों की सभा में धर्मकथा अर्थात्-व्याख्यान नहीं बाँच सकती, परन्तु स्त्री-पुरुष दोनों की सभा में व्याख्यान बाँच सकता है। जिस प्रकार साधु को केवल स्त्रियों के सामने धर्मकथा कहने का निषेध है उसी प्रकार केवल पुरुषों की सभा में साध्वियों को भी धर्मकथा कहने का निषेध है। श्री " उत्तराध्ययन" सूत्र के ब्रह्मचर्य समाधिस्थान अध्ययन के एवं स्थानाङ्ग सूत्र के पाठ के प्रमाण से भी यही बात सिद्ध की गई है कि- जो साधु होता है वह स्त्रियों में धर्मकथा न करे अगर करे तो उसके ब्रह्मचर्य की हानि होती है। उसी प्रकार साध्वी भी पुरुषों की सभा में धर्मकथा न करे, यदि करे तो उसके भी ब्रह्मचर्य की हानि होवे । संयम धर्म में ब्रह्मचर्य की रक्षा साधु-साध्वी दोनों को समान रूप से करना आवश्यक है। इसलिए साधु केवल स्त्रियों का और साध्वी केवल पुरुषों का परिचय न करें । परन्तु धर्म-देशना स्त्री-पुरुष दोनों की सभा में दोनों ही दे सकते हैं।
१६-श्री विजयसेनसूरिजी का सेनप्रश्नः- श्री हीरविजयसूरिजी महाराज का "हीरप्रश्न" एवं विजयविमलगणिजी की बनाई हुई "गच्छाचार पयन्ना" की टीका के प्रमाणानुसार साधु अकेली स्त्रियों की सभा में व्याख्यान नहीं बाँच सकता, उसी प्रकार साध्वी भी अकेले पुरुषों की सभा में व्याख्यान नहीं बाँच सकती, परन्तु जिस तरह स्त्री-पुरुष दोनों की सम्मिलित सभा में साधु व्याख्यान बांच सकता है, उसी तरह से साध्वी भी स्त्री-पुरुष दोनों की सम्मिलित सभा में व्याख्यान बांच सकती है। इससे साधुओं की तरह साध्वी भी व्याख्यान बांचने की अधिकारिणी है। इतने स्पष्ट शास्त्रीय प्रमाण मिलने पर भी जो महाशय साध्वी व्याख्यान का निषेध करते हैं, वे शास्त्रों की उपेक्षा करके अपना आग्रह जमाने वाले ठहरते हैं।
१७ - श्री लक्ष्मीवल्लभगणिजी कृत मूल-टीका सहित जामनगर से प्रकाशित "उत्तराध्ययन" सूत्र के नवमें अध्ययन में "नमिराज" चरित्र के वर्णन में साध्वी को व्यास्यान बांचने का अधिकार आया हैं - देखियेः- पाठः--
"मिथिलास्था सुव्रता जनोदतेन तद्विग्रहं श्रुत्वा जनक्षयवारणाय तयोरुपशमाय च महत्तरामनुज्ञाप्य साध्वीयुता, सुदर्शनपुरे नमि सैन्ये गत्वा नमिमवंदापयत् । नमिरपि तस्या आसनं दत्वा भृम्धुपविष्टः । साध्व्याद्धर्म उक्तः,उपदेशान्ते चोक्तः-असारा राज्यश्रीः। दु:खं विषयसुखं । पापका
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