Book Title: Sadhvi Vyakhyan Nirnay
Author(s): Manisagarsuri
Publisher: Hindi Jainagam Prakashak Sumati Karyalay

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Page 20
________________ साध्वी व्याख्यान निर्णयः की बनाई हुई "सिद्धपंचाशिकावचूर्णि" एवं श्रीमलय गिरिजी रचित "नन्दी सूत्र की टीका" आदि के प्राचीन पाठ जो कि ऊपर लिख दिये गये हैं उनसे स्पष्ट प्रकट है कि साधुओं के उपदेश से प्रतिबोध पाये हुए जीव जिस प्रकार सिद्ध होते हैं, उस ही प्रकार बुद्धि अर्थात्साध्वियों के उपदेश से प्रतिबोध पाये पुरुषादि भी सिद्ध होते हैं, इससे साध्वियों को भी साधुओं की तरह श्रोताओं के सामने धर्म देशना देने का अधिकार सिद्ध है। ११-यहां पर कई महाशय ऐसी भी शंका कर बैठेंगे कि "सिद्ध प्राभृत" आदि उपर्युक्त प्रमाणों के अनुसार साध्वियों को धर्मोपदेश देना कहा गया है। इससे सामान्यतया पुरुषों के आगे व्यक्तिगत रूप से धर्मोपदेश देने का सिद्ध हो सकता है। परन्तु स्त्री-पुरुषों की सभा में व्याख्यान रूप में धर्मदेशना देने का सिद्ध नहीं हो सकता । ऐसा कथन भी अनसमझ का ही प्रतीत होता है। क्योंकि देखिये "बुद्धिओ सयंबुद्धिओ मल्लिपमुहाओ अण्णाओ य सामण्ण साहुणीपमुहाओ बोहिंति ॥" सिद्धप्राभूत के इस पाठ में जैसे श्री मल्ली तीर्थकरी के लिए उपदेश देना लिखा है वैसे ही अन्य सामान्य साध्वियों के लिए भी उपदेश देने का लिखा है। इसलिए जिस तरह स्त्री पुरुष आदि की परिषदा में (सभा में) स्त्री तीर्थकरी मल्ली आदि के लिए व्याख्यान रूप धर्मदेशना देना ठहरता है, इसही प्रकार सामान्य साध्वियों के लिए भी स्त्री-पुरुषों आदि की सभा में व्याख्यान रूप में धर्मदेशना देने का सिद्ध होता है। इसलिए सामान्य धर्मोपदेश कह कर स्त्री-पुरुषों आदि की सभा में व्याख्यान देने का निषेध नहीं कर सकते । मल्लीनाथ स्वामी आदि स्त्री तीर्थकरी के समान ही सामान्य साध्वियों के लिए धर्मोपदेश देने का समान अधिकार बतलाया है इस बात को समझने वाले सामान्य देशना के बहाने साध्वियों के लिए सभा में व्याख्यान देने का कभी निषेध नहीं कर सकते। अब साध्वियों के व्याख्यान के लिए और भी प्रमाण प्रस्तुत करते हैं। १२-इस ही तरह "श्री सेनप्रश्न" ग्रन्थ जो कि श्री देवचन्द्र लालभाई जैन पुस्तकोद्धार संस्था की तरफ से प्रकाशित हुआ है उसके पृष्ठ ७४ की पहिली पुट्ठी में ऐसा पाठ है। - “ तथा- नन्दीवृत्तौ ५३ पत्रे 'खित्तोगाहाण' गाथाविचारे बुद्धद्वारे सर्वस्तोकाः स्वयम्बुद्धमिद्धास्तेभ्योऽपि प्रत्येकबुद्धसिद्धाः संख्येयगुणास्तेभ्योऽपि बुद्धिबोधितसिद्धाः संख्येयगुणास्तत्कथं ? यतो बुद्धिबोधितानां केवल श्राद्धसभाग्रे व्याख्यानस्य दशवैकालिकवुरयादौ निषेधदर्शनादिति। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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