________________
साध्वी व्याख्यान निर्णयः
प्रश्नोत्तरं - बुद्धिशब्देन तीर्थकर्यः सामान्य साध्व्यञ्चोच्यन्ते, तत्र तीर्थकरीणामुपदेशे विचार एव नास्ति, सामान्य साध्वीनां तु यद्यपि केवलश्राद्धानां पुरस्तादुपदेशनिषेधः तथापि श्राद्धमिश्रितानां कारणे केवलानां च पुरस्तादुपदेशः सम्भवत्यपीति न काव्यनुपपत्तिरिति ॥
इस पाठ का भावार्थ ऐसा है कि-बुद्धद्वार में सब से कम स्वयम्बुध ( तीर्थकर ) सिद्ध होते हैं। उनसे प्रत्येकबुद्ध नमि आदि संख्यात गुणे अधिक सिद्ध होते हैं, उनसे भी बुद्धबोध ( गुरु के उपदेश से ) संख्यात गुणे अधिक सिद्ध होते हैं । उन्होंसे भी बुद्धि बोधित अर्थात् - साध्वियों के उपदेश से प्रति पाये हुए संख्यातगुणे अधिक सिद्ध होते हैं। अब यहाँ पर यह शंका पैदा होती है कि-साध्वियों के उपदेश से प्रतिबोध पाये हुए पुरुष आदि अधिक सिद्ध होते हैं । तब साध्वियों को तो अकेले पुरुषों की सभा में धर्मोपदेशका व्याख्यान देने का " दशवैकालिक टीका" में निषेध किया है । इस शंका का समाधान श्री विजय सेनसूरिजी महाराज इस प्रकार करते हैं- बुद्धि शब्द से स्त्री तीर्थकरी तथा सामान्य साध्वी दोनों का ग्रहण होता है । स्त्रीतीर्थकरी के उपदेश की बाबत तो कोई शंका की बात ही नहीं है । परन्तु सामान्य साध्वियों के लिए यद्यपि केवल श्रावकों की सभा के सामने उपदेश देना मना है परन्तु श्रावक-श्राविकाओं की मिश्र सभा में उपदेश देसकती हैं और कारण वश अकेले पुरुषों की सभा में भी उपदेश देने का संभव शब्द से स्वीकार किया है इसमें कोई भी बाधा नहीं है ।
१३- देखिये - ऊपर के पाठ में साध्वियों के उपदेश से अधिक सिद्ध होने का कहा है । साध्वियाँ स्त्री-पुरुष दोनों को या कारण वश अकेले पुरुषों को भी उपदेश देसकती हैं, अनादि काल से सिद्ध होते आये हैं । महाविदेह क्षेत्रों में वर्तमान में सिद्ध होते हैं और आगे भी सिद्ध होते रहेगें । इससे साध्वियों भी अनादि काल से भव्य जीवों को स्त्री-पुरुष आदि को धर्मोपदेश देती आई हैं तथा वर्तमान में भी धर्मोपदेश देती हैं और आगे भी धर्मोपदेश देती रहेंगी, ऊपर के पाठ से यह नियम अनादि सिद्ध होता है ।
ऊपर के पाठ में साध्वियों के लिए सभा में व्याख्यान बांचने का स्पष्ट उल्लेख है इस लिए व्यक्तिगत सामान्य उपदेश देने का कहकर सभा में व्याख्यान बांचने का निषेध नहीं कर सकते । परन्तु अकेले श्रावकों की सभा में व्याख्यान करना निषेध किया, और श्रावकश्राविकाओं की सभा में व्याख्यान देने का बतलाया है । इसलिए वर्तमानिक जो महाशय साध्वियों को व्याख्यान बांचने का निषेध करते हैं उन्होंको अपनी भूल सुधारकर साध्वियों के प्रति व्याख्यान बांचने की सत्य बात स्वीकार करनी चाहिये ।
१४ - श्री कीर्तिविजयगणि संग्रहीत श्री हीरविजयसूरिजी महाराज का "हीर प्रश्नोत्तराणि" नामक ग्रन्थ - जो कि शा० चंदुलाल जमनादास छाणी (गुजरात ) से प्रकाशित
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com