Book Title: Sadhvi Vyakhyan Nirnay
Author(s): Manisagarsuri
Publisher: Hindi Jainagam Prakashak Sumati Karyalay

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Page 16
________________ साध्वी व्याख्यान निर्णयः पवेयत्तए वा, नऽन्नत्थ एगनाएण वा जाव सिलोएण वा, से विय ठिच्चा नो चेव णं अठिच्चा ॥ २१ ॥ ___ अस्य व्याख्या प्राक्सूत्रवद् द्रष्टव्या। न वरं "इमानि" स्वयमनुभूयमानानि पञ्चमहाव्रतानि "सभावनानि " प्रतिव्रतं भावनापञ्चकयुक्तान्याख्यातुं वा विभावायतुं वा कीर्तयितुं वा प्रवेदयितुं वा न कल्पन्ते । आख्यान नाम साधूनां पञ्चमहाव्रतानि पञ्चविंशतिभावनायुक्तानि षट्कायरक्षणसाराणि भवन्ति । विभावनं तु-प्राणातिपाताद् विरमणं यावत् परिग्रहाद् विरमणमिति । भावनास्तु-"इरियासपिए सयाजए " (आव० प्रति० संग्र० पत्र ६५८-२ इत्यादि) गाथोक्तस्वरूपाः । षटकायास्तु पृथिव्यादयः । कीर्तनं नाम-या प्रथमत्रतरूपा अहिंसा सा भगवती सदेवमनुजाऽसुरस्य लोकस्य पूज्या द्वीपः त्राणं शरणं गतिः प्रतिष्ठेत्यादि, एवं सर्वेषामपि प्रश्नव्याकरणङ्गोक्तान्- (संवराध्ययनानि ५ तः १०) गुणान् कीर्तयति । प्रवेदनं तु महाव्रतानुपालनात् स्वर्गोऽपवर्गो वा प्राप्यत इति सूत्रार्थः ॥ अर्थ-इसका अर्थ भी इस ही प्रकार है कि-साधु साध्वियों को गृहान्तर में पच्चीस भावना सहित पांच व्रतोंका विस्तार पूर्वक वर्णन करना-पाख्यान-विभावन कीर्तन और प्रवेदन करना नहीं कल्पता है। परन्तु पहिले के पाठ में स्पष्ट रूप से बताया है कि एक दृष्टान्त यावत् एक श्लोक का अर्थ खड़े खड़े संक्षेप में कद्दन। कल्पता है। किन्तु बैठ कर नहीं कल्पता है । १-साधु के पांच महाव्रतों की पच्चीस भावनाओं का स्वरूप, छः काय जीवों की रक्षा का स्वरूप वर्णन करना सो आख्यान कहा जाता है २-प्राणातिपात से विरमण यावत परिग्रह से विरमण त्याग करने का, इरियासमिति आदि का यत्न करने का और पृथ्वीकाय आदि त्रस स्थावर की रक्षा करने का उपदेश देना विभावन कहा जाता है। प्रथम महाव्रत अहिंसा भगवती देव, मनुष्य, असुर आदि तमाम लोक की पूज्यनीया है। तथा द्वीप समान शरण देने वाली रक्षण करने वाली है। और उत्तम गति देने वाली है। अहिंसा में ही सर्व धर्म प्रतिष्ठित हैं सर्व धर्मों में अहिंसा ही मूल रूप से व्यापक है। एवं प्रश्न व्याकरण सूत्र के पांच से दश अध्ययन तक संघर अध्ययन आदि से गुण वर्णन करना अहिंसा की महिमा बतलाना ये कीर्तन कहलाता है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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