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* श्री वीतरागाय नमः *
साध्वी व्याख्यान निर्णय
१-जैन शासन में जिस तरह से तीर्थकर भगवान को और अन्य सामान्य साधुओं को धर्मोपदेश देने का अधिकार है, उसही प्रकार स्त्री तीर्थकरी और अन्य सामान्य साध्वियों को भी भव्य जीवों के हित के लिये धर्मोपदेश देने का समान अधिकार है। इसलिये प्रत्येक बुद्धों से प्रतिशेध पाये हुये जितने सिद्ध होते हैं उससे कहीं अधिक साध्वियों से प्रतिबोध पाये हुये पुरुष संख्यात गुणे अधिक सिद्ध होते हैं, इस विषय का विवरण नन्दीसूत्र की टीकादि सर्व मान्य प्राचीन शास्त्रों में है। खरतरगच्छ तपगच्छ श्रादि सर्व गच्छों के पूर्वाचार्यों को भी यह बात मान्य है, किन्तु वर्तमान कालमें ज्ञानसुन्दरजी ( घेवर मुनिजी) आदि कई महानुभाव साध्वियों को स्त्री-पुरुषों की सभा में धर्मोपदेश देने का निषेध करते हैं, परन्तु प्राचीन किसी भी शास्त्र का प्रमाण नहीं बतलाते हैं। केवल अपनी मान प्रतिष्ठा बढ़ाने के लिए और साध्वी समाज को अपने नीचे दबाये रखने के लिए पुरुष प्रधान धर्म का बहाना लेकर व्याख्यान बांचने वाली साध्वी और सुनने वाले श्रावक समुदाय पर अनेक प्रकार के आक्षेप करते हैं और व्यर्थ कुयुक्तियों से अप्रासंगिक बात बनाकर जैन समाज में मिथ्या भ्रम फैलाते हैं इस लिये आज हम शास्त्रीय प्रमाणानुसार अपने निष्पक्ष दृष्टि से विचार प्रगट करते हैं, जिसे पाठक गण गुणानुगगी होकर इसे संपूर्ण पढ़कर सत्य का ग्रहण करें।
२-जैन श्वेताम्बर समाज में अभी प्रायः सात सौ साधु और दो हजार लगभग साध्वियों का समुदाय होगा। किन्तु साधु समुदाय में प्रभाव शाली व्याख्यान बांचने योग्य सौ साधु निकलने भी कठिन प्रतीत होते हैं और मारवाड़ दक्षिण मालवा आदि प्रान्तों में व्याख्यान योग्य प्रभाविक साधुओं का विहार मी कम होता है। जिससे प्रति दिन श्वेताम्बर जैन समाज का धार्मिक ह्रास हो रहा है। ऐसी दशा में विदुषी साध्वियां ग्राम नगरों में विहार करती हुई और वर्षा काल में (चौमासा में ) ठहरती हुई, श्रावकश्राविकाओं के समुदाय में धर्मोपदेश द्वारा अनेक भव्य जीवो को धर्म मार्ग में प्रवृति कराती हुई तथा व्रत पञ्चक्खाणादि धर्म कार्यों से समाज का हित करती हुई शासन की सेवा करें तो कितना बड़ा महान् लाभ हो सकता है, इस प्रकार के धार्मिक कार्यों में बाधा पहुँचा कर समाज और धर्म को हानी पहुँचाने के लिये साध्वियों को व्याख्यान वांचने का निषेध करना उचित नहीं हैं।
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