Book Title: Rogimrutyuvigyanam Author(s): Mathuraprasad Dikshit Publisher: Mathuraprasad Dikshit View full book textPage 8
________________ * प्राक्कथन * रोगिमत्युविज्ञान इस अन्वर्थ नाम से ही इसमें प्रतिपादित विषय स्पष्ट हो जाता है। रोगी की चेष्टा, शरीर में उत्पन्न चिह्न, उसके व्यापार और दूसरे जीवों का सहयोग वियोगादि देख कर उसके मृत्यु समय को बता देना, यही इसका मुख्य विषय है। रोगी के मृत्यु-समय के वर्ष, मास, दिन और समय आदि जानने या वताने में तिथि, वार, नक्षत्र, लग्न, राशि आदि की अपेक्षा नहीं है; अतः संदिग्ध ज्ञानबोधक ज्योतिषशास्त्र का यह विषय नहीं है; किन्तु निश्चयात्मक निर्णीत ज्ञान को यह बता देता है, अतः यह विज्ञान ही है । भावमिश्र जी ने स्पष्टतः इस 'अरिष्ट' का स्वरूप बताते हुए कहा है कि "नियतमरणख्यापकं लिङ्गमरिष्टम" डंके की चोट पर जो चिन्ह मत्य को बता दे, यही तो विज्ञान है। इसका वर्ण्य विषय जैसे__ जिस स्नातानुलिप्त स्वच्छ मनुष्य के शरीर पर सर्वतः मक्षिकादि पड़े अथवा शरीर पर पिपीलिका बड़े मुख वाले चींटा आदि दौड़े, काटे, वह तीन मास के अन्दर मर जाता है। एवं जिसका शरीर स्नाननान्तर समस्त ख स्क हो जाय अर्थात् मारे शरीर का पानी या लगाया हुआ चन्दन सूख जाय; किन्तु मस्तक और हृद्गत चन्दन न सूखे, वह केवल एक वर्षमात्र जीवित रहता है। जो रोगी वैद्य के समक्ष अज्ञानपूर्वक अपने विस्तरे पर अथवा पार्श्वस्थ भित्ति पर खोई हुई वस्तु के समान कुछ अपने हाथों से ढूँढ, वह निश्चय से तीन दिनों के अन्दर मर जायगा, इत्यादि ज्ञान सभी वैद्यों के लिये परमोपकारी है। उक्त प्रकार के लक्षणों का इसमें वर्णन है। यह अपूर्व ग्रन्थ चरक-सुश्रुत वाग्भटादि आर्ष ग्रन्थों के तथा परंपरानुगत अनुभूत निश्चयात्मक ज्ञान के आधार पर बनाया गया है। इसका हिन्दी अनुवाद स्वयं मूल ग्रन्थकर्ता महामहोपाध्याय दीक्षित जी ने ही किया हैं, वैद्योंको पुस्तक मँगाने में शीघ्रता करनी चाहिए। अन्यथा तृतीयावृत्ति की प्रतीक्षा करनी पड़ेगी। आयुर्वेद-सन्देश संपादक वैद्यराज सुरेन्द्रनाथदीक्षितPage Navigation
1 ... 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 ... 106