Book Title: Rishabhdev Ek Parishilan
Author(s): Devendramuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 55
________________ ऋषभदेव : एक परिशीलन लिए बिना ही आरोग्य प्रदान करने हेतु सर्वप्रथम लक्षपाक तैल से मर्दन किया। उष्णवीर्य तैल के प्रभाव से शरीरस्थ कृमियाँ बाहर निकलने लगी तो उन्होंने शोतवीर्य रत्नकम्बल से मुनि के शरीर को आच्छादित कर दिया, जिससे वे शरीरस्थ कृमि रत्न-कम्बल में आगई। उसके पश्चात् रत्न कम्बल की कृमियों को मृत-गोचर्म में स्थापित कर दिया, जिससे उनका प्राणघात न हो । उसके पश्चात् पुनः मर्दन किया और रत्नकम्बल से आच्छादित करने पर मांसस्थ कृमियाँ निकल आई । तृतीय बार पुनः मर्दन किया और रत्नकम्बल ओढ़ा देने पर अस्थिगत कृमियाँ निकल गई । जब शरीर कृमियों से मुक्त हो गया तो उस पर गोशीर्षचन्दन का लेप किया, जिससे मुनि पूर्ण स्वस्थ हो गये। मुनि की स्वस्थता देखकर छहों मित्र अत्यन्त प्रमुदित हुए। मुनि के तात्त्विक प्रवचन को सुन कर छहों को संसार से विरक्ति हुई, उन्होंने दीक्षा ग्रहण की और उत्कृष्ट संयम की साधना की ।१२ १११. ताहे तेल्लेण सो साहू पढमं अभिगितो, त चेद तेल्लं रोमकूवेहि सव्वं अइगयं, तम्मि य अइगए किमिया सव्वे संखुद्धा ताहे ते निग्गए, ठूण कंबलरयरगरण सो साहू पाउत्तो, तं सीयलं, तेल्लं च उण्हवीरियं ते किमिया तत्थ लग्गा, ताहे पुवाणिय गोकडेवरे पप्फोडियं, ते सव्वे पडिया, ततो सो साहू चन्दगण लित्तो, जातो समासत्थो, एवं तिन्निवारे अभंगिऊण सो साहू तेहि नीरोगो कतो। -आवश्यक मल० वृ० १० १५६ (ख) त्रिषप्ठि ११११७५८ से ७७६ । ११२. (क) पच्छा ते सड्ढा जाया, पच्छा समणा । -आवश्यक नि० मल० वृत्ति, पृ० १५६ (ख) ते पच्छा साहू जाता। -आवश्यक हारिभद्रीयावृत्ति पृ० ११७ (ग) ते षडप्येकदा जातसंवेगाः साधुसन्निधौ । धीमन्तो जगृहुदीक्षां, मयंजन्मतरोः फलम् ।। -त्रिषष्ठि ११७८० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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