Book Title: Rishabhdev Ek Parishilan
Author(s): Devendramuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 118
________________ साधक जीवन चित्रित किया है। भागवत का प्रस्तुत वर्णन श्रमण भगवान् महावीर के अनार्य देशों में विहरण के समान है । १४४ विशिष्ट लाभ एक वर्ष पूर्ण हुआ । कुरुजनपदीय गजपुर के अधिपति बाहुबली के पौत्र एशं सोमप्रभ राजा के पुत्र यांस ने स्वप्न देखा कि सुमेरु पर्वत श्याम वर्ण का हो गया है । उसे मैंने मृत कलश से अभिषिक्त कर पुनः चमकाया । १४५ नगर ष्ठी सुबुद्धि ने उसी रात्रि में स्वप्न देखा कि सूर्य की हजार किरणें अपने स्थान से चलित हो रही थीं कि श्र ेयांस ने उन रश्मियों को पुनः सूर्य में संस्थापित कर दिया ।१४६ राजा १०१ १४४. तुलना कीजिये - आचारांग प्रथम श्रुत० अध्या० ६ उद्द े० ३ से । १४५. छउमत्थो य वरिसं बहलीचंडबइल्लेहिं विहरिऊरणं गजपुरं गतो, तत्त्थ भरहस्स पुत्तो सेज्जंसो, अन्ने भणन्ति बाहुबलिस्स सुतो सोमप्पभी सेयंसोय, ते य दोऽवि जगा नगरसेट्ठी य सुमिरणे पासन्ति तं तणि, समागताय तिन्निवि सोमस्स समीवे कहेंति, सेयंसो - सुणह अज्जं मया जं सुमिरणे दिट्ठ - मेरु किल चलितो, इहागतो मिलायमाणपभो मया य अमयकलसेण अभिसितो साभावितो जातो पfseat sहि | - आवश्यक चूर्णि जिन० पृ० १६२-१६३ (ख) कुरुजणवए गयपुरं नाम नगरं तत्थ बाहुबलिपुत्तो सोमप्पभो राया, तस्स पुत्त सेज्जसो जुवराया, सो सुमिरणे मन्दरं पव्वयं सामवण्णयं पासइ, ततो अरणेण अमयकलसेण अभिसित्तो अमहियं सोभितुमाढतो । -- आवश्यक नियुक्ति मल० वृ० प० २१७ (ग) त्रिषष्ठि १।३।२४४-२४५ । १४६. नगरसेट्ठी सुबुद्धिनामो, सो सूरस्स रस्सीसहस्सं ठाणाओ चलियं पासति, नवरं सिज्जसेण हक्खुत्त सो य अहिअयरं तेयसम्पुण्णो जाओ । - आवश्यक हारिभद्रोयावृत्ति प० १४५ १ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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