Book Title: Rishabhdev Ek Parishilan
Author(s): Devendramuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 135
________________ ऋषभदेव : एक परिशीलन श्रावश्यक नियुक्ति, १९४ ग्रावश्यक चूरिण, आवश्यक मलयगिरीय ९६ त्रिषष्ठिशलाका पुरुष ११८ १९५ वृत्ति, ' आवश्यक हारिभद्रीया वृत्ति चरित्र, १९७ १९८ कल्पलता, * कल्पद्र ुम कलिका, १९९ महावीरचरिया" प्रभृति श्वेताम्बर ग्रन्थों के अनुसार भगवान् के प्रथम प्रवचन को श्रवण कर सम्राट् भरत का पुत्र मरीचि भगवान् ऋषभदेव के पास दीक्षित होता (ग) येऽपि च तापसाः कच्छमहाकच्छविवर्जिताः तेऽपि प्रपेदिरे दीक्षां समेत्य १६८. १९४. दट्टण कीरमाणि महिमं देवेह खत्तिओ मरिई । सम्मत्तलद्धबुद्धी धम्मं सोऊण पव्वइओ || १६६. 1 स्वामिनोऽन्तिके || १६५. एत्थ समोसरणे मरिचिमाइया बहवे कुमारा पव्त्रइया, - कल्पार्थ- बोधिनी पृ० १५१ १६६. आवश्यक हारिभद्रया वृत्ति १६७. आद्य समवसरणे ॠषभस्वामिनः प्रभो । पितृभ्रात्रादिभिः सार्धं मरीचिः क्षत्रियो ययौ | महिमानं प्रभोःप्रेक्ष्य क्रियमाणं स नाकिभिः । धर्म चाकर्ण्य सम्यक्त्वल धधीव्रं तमाददे || - आव० नि० गा० ३४७ २००० पियामहस्स पासे पव्वइओत्ति । Jain Education International - आवश्यक मल० वृ० पृ० २३०।१ तत्र भरतस्य मरीचिप्रमुखाः पञ्चशतपुत्राः सप्तशत पौत्राश्च प्रतिबुद्धा: दीक्षां जगृहु: । - त्रिपष्ठि० १०।१।२२-२३ -कल्पलता - - पृ० २०७ तत्र प्रथम देशनायां धर्मं श्रुत्वा पञ्चशतं भरतस्य पुत्राः सप्तशतं भरतस्य पौत्राः प्रतिवोधं प्रापुः, द्वादशशतकुमारैर्दीक्षा गृहीता' द्वादशशतकुमारेषु मरीचिरपि दीक्षित आसीत् । - कल्पद्र ुम कलिका - पृ० १५१ - महावीर चरियं, गुणचन्द्राचार्य पत्र ११ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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