Book Title: Rishabhdev Ek Parishilan
Author(s): Devendramuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 145
________________ १२८ ऋषभदेव : एक परिशीलन मरीचिपुत्र ने अग्निदेव के प्रतीक के रूप में जो ऋषभदेव की स्तुति की है वह हमारे मन्तव्यानुसार वही मरीचि हैं जिनका प्रस्तुत इतिवृत्त से सम्बन्ध है। सुन्दरी का संयम - भगवान् श्री ऋषभ के प्रथम प्रवचन को श्रवण कर ही सुन्दरी संयम ग्रहण करना चाहती थी। उसने यह भव्य-भावना अभिव्यक्त भी की थी किन्तु सम्राट भरत के द्वारा प्राज्ञा प्राप्त न होने से वह श्राविका बनी ।२३० परन्तु उसके अन्तर्मानस में वैराग्य का पयोधि उछालें मार रहा था, वह तन से गृहस्थाश्रम में थी किन्तु उसका मन संयम में रम रहा था। षट् खण्ड पर विजय वैजयन्ती फहराकर और सम्पूर्ण भारतवर्ष को एक अखण्ड शासन प्रदान कर जब सम्राट् भरत दीर्घकाल के पश्चात् “विनीता" लौटे तब सुन्दरी के कृश तनु को देखकर वे चकित रह गये ।२३१ २३५. सुन्दरी पव्वयंती भरहेण इत्थीरयणं भविस्सइत्ति निरुद्धा साविया जाया। -आवश्यक मलयगिराय वृत्ति, पृ० २२६ (ख) विमुक्ता बाहुबलिना, जिघृक्षुः सुन्दरी व्रतम् । भरतेन निषिद्धा तु, श्राविका प्रथमाऽभवत् ।। -त्रिषष्ठि० ५० १। स० ३। ५० ६५१ (ग) कल्प सुबोधिका टीका पृ० ५१२, सारा० न० । (घ) कल्पलता-समय सुन्दर पृ० २०७ । (ङ) कल्पद्र म कलिका पृ० १५१ । एवं जाहे बारस वरिसाणि महारायाभिसेगो वत्तो, रायाणो विसज्जिता ताहे णियगवग्गं सारिउमारद्धो, ताहे दाइज्जति सब्वे णियलग्गा एवं पडिवाडिए सुन्दरी दाइता, सा पंडुल्लुइतमुही, सा य जद्दिवसं रुद्धा चेव तद्दिवसमारद्धा चेव आयंबिलाणि करेति, तं पासित्ता रुट्ठो ते कोडुबिये भणति........ । -आवश्यक चूणि, पृ० २०६ २३६. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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