Book Title: Rishabhdev Ek Parishilan
Author(s): Devendramuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra
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तीर्थकर जीवन
१५७
परिनिर्वाण कहा है । शिव पुराण ने अष्टा पद पर्वत के स्थान पर कैलाश पर्वत का उल्लेख किया है ।३१२२
भगवान् श्री ऋषभदेव की निरिणतिथि जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति,१३ कल्पसूत्र,३१४ त्रिषष्ठि शलाका पुरुष चरित्र के अनुसार माघ कृष्णा
(घ) दीक्षाकालात् पूर्वलक्षं, क्षपयित्वा ततः प्रभुः ।
ज्ञात्वा स्वमोक्ष कालं च, प्रतस्थेऽष्टापदं प्रति ।। शैलमष्टापदं प्राप, क्रमेण सपरिच्छदः । निर्वाणसौधसौपानमिवाऽऽरोहच्च तं प्रभुः ॥ समं मुनीनां दशभिः सहस्र : प्रत्यपद्यत । चतुर्दशेन तपसा, पादपोपगमं प्रभुः ॥
—त्रिषष्ठि० १।६।४५६ से ४६१ (ङ) दसहि अणगारसहस्सेहि सद्धि संपरिबुडे अट्ठावयसेलसिहरंसि
चोद्दसमेणं भत्तण अप्पाएएणं संपलिग्रंकासरणे निसरणे पुव्यह कालसमयंसि अभिइणा णक्खत्तेणं जोगमुवागएणं सुसमदुस्समाए एगुणणवइए पक्खेहि सेसेहि कालगए वीइक्कते जाव सव्वदुक्खप्पहीणे।
-जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति, सू० ४८ पृ० ६१ ३१२. कैलाशे पर्वते रम्ये,
वृषभोऽयं जिनेश्वरः । चकार स्वावतारं च सर्वज्ञः सर्वगः शिवः ।।
-शिवपुराण ५६ ३१३. जे से हेमंताणं तच्चे मासे पंचमे पक्खे माहबहुले तस्स णं माहबहुलस्स तेरसीपक्खेरणं ।
-जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति, सू० ४८, पृ० ६१ ३१४. जे से हेमंताणं तच्चेमासे पंचमे पक्खे माहबहुले तस्स णं माहबहुलस्स तेरसीपक्खेणं ।
-कल्पसूत्र , सू० १६६, पृ० ५६ ३१५. त्रिषष्ठि० ११६
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