Book Title: Rishabhdev Ek Parishilan
Author(s): Devendramuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

Previous | Next

Page 185
________________ १६८ ऋषभदेव : एक परिशीलन ५६. खंधावारमाणं- सेना के पड़ाव का प्रमाण जानना । ५७. नगरमाणं- नगर का प्रमाण जानने की कला। ५८. वत्थमाणं-वस्तु का प्रमाण जानने की कला। ५६. खंधावारनिवेसं-सेना का पड़ाव आदि कहाँ डालना इत्यादि का परिज्ञान । ६०. वत्थुनिवे-प्रत्येक वस्तु के स्थापन कराने की कला । ६१. नगरनिवेसं-नगर निर्माण का ज्ञान । ६२. ईसत्थं-- ईपत् को महत् करने की कला । ६३. छरुप्पवायं - तलवार आदि की मूठ आदि बनाने की कला । ६४. ग्राससिक्खं-अश्व-शिक्षा । ६५. हरिथसिक्खं-हस्ती-शिक्षा । ६६. धणुवेयं -- धनुर्वेद । ६७. हिरण्णपागं, सुवण्णपागं, मणिपागं, धातुपागं-हिरण्यपाक, सुवर्णपाक, मणिपाक, धातुपाक बनाने की कला । बाहुजुद्ध, दंडजुद्ध, मुट्ठिजुद्ध, अट्टिजुद्ध, जुद्ध, निजुद्ध, जुद्धाइजुद्ध - बाहु युद्ध, दण्ड युद्ध, मुष्टि युद्ध, यष्टि युद्ध, युद्ध, नियुद्ध, युद्धातियुद्ध करने की कला । ६६. सूत्ताखेडं, नालियाखेडं, वट्ट खेडं, धम्मखेडं, चम्मखेडं-सूत बनाने की, नली बनाने की, गेंद खेलने की, वस्तु के स्वभाव जानने की, चमड़ा बनाने आदि की कलाए । ७०. पत्तच्छेज्ज-कडंगच्छेज्ज= पत्र-छेदन, वृक्षाङ्गविशेष छेदने की कला। ७१. सजीवं, निज्जीवं- संजीवन, निर्जीवन । ७२. सउणरुयं- पक्षी के शब्द से शुभाशुभ जानने की कला । (क) समवायाङ्ग सूत्र समवाय ७२ (ख) नायाधम्मकहा पृ० २१ (ग) राजप्रश्नीय सूत्र पत्र ३४० (घ) औपपातिक सूत्र ४०, पत्र ० १८५ (ङ) कल्पसूत्र सुबोधिका टीका Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194