Book Title: Rishabhdev Ek Parishilan
Author(s): Devendramuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

Previous | Next

Page 169
________________ १५२ ऋषभदेव : एक परिशीलन प्राप्त किया।२९८ श्रीमद्भागवत के अभिमतानुसार सौ पुत्रों में से कवि, हरि, अन्तरित, प्रबुद्ध, पिप्पलायन, आविर्होत्र, द्रु मिल, चमस, और करभाजन--ये नौ आत्म विद्याविशारद पुत्र वातरशन श्रमण बने ।२९९ भगवान के संघ में भगवान् के आध्यात्मिक पावन प्रवचनों को श्रवण करके भगवान् के संघ में चौरासी हजार श्रमरण बने ।३०° तीन लाख श्रमणियाँ बनीं,३०१ २६८. आवश्यक नियुक्ति, गा० ३४८-३४६ मल० वृ० प० २३१-३२ । २६६. नवाभवन् महाभागा मुनयोह्यर्थशंसिनः । श्रमणा वातरशना आत्मविद्याविशारदाः ।। कवि हरिदन्तरिक्षः प्रबुद्धः पिप्पलायनः । आविर्होत्रोऽथ द्रु मिलश्चमसः करभाजनः ।। -भागवत११।२।२०-२१ ३००. (क) समवायाङ्ग ८४ (ख) आवश्यक नि० गा० २७८ मल० वृ० प० २०७ (ग) जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति (घ) उसभसेणपामोक्खाओ चउरासीइ समणसाहस्सीओ उक्कोसिया समणसंपया होत्था । -कल्पसूत्र, सू० १६७ पृ० ५८ (ङ) त्रिषष्ठि० १।६। ३०१. बंभीसुन्दरिपामोक्खाणं अज्जियाणं तिनि सयसाहस्सीओ उक्कोसिया अज्जियासंपया होत्था । --कल्पसूत्र सू० १६७ पृ० ५८ (ख) आवश्यक मल० वृ० प० २०८ गा० २८२ (ग) जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, पृ० ८७ अमोल (घ) त्रिषष्ठि० ११६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194