Book Title: Rishabhdev Ek Parishilan
Author(s): Devendramuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 158
________________ तीर्थकर जीवन १४१ समयसुन्दर ६४ प्रभृति ने दृष्टि युद्ध, वाक्युद्ध, बाहयुद्ध, मुष्टि युद्ध और दण्डयुद्ध इन पाँच का वर्णन किया है। सभी में सम्राट् भरत पराजित हुए और बाहुबली विजयी हुए। भरत को अपने लघु भ्रातासे पराजित होना अत्यधिक अखरा ।२६५ आवेश में आकर और मर्यादा को विस्मृत कर बाहुबली के शिरश्छेदन करने हेतु भरत ने चक्र का प्रयोग किया। यह देख बाहुबली का खून उबल गया । बाहुबली ने उछलकर चक्र को पकड़ना चाहा, पर चक्र बाहुबली की प्रदक्षिणा कर पुनः भरत के पास लौट गया । बाहुबली का बाल भी बाँका न हुआ।२६६ यह देख सभी सन्न २६४. पंचयुद्धानि स्थापितानि (१) दृष्टियुद्ध, (२) वागयुद्ध, (३) बाहुयुद्ध, (४) मुष्टियुद्ध, (५) दण्ड युद्धानि । एतैः पञ्चयुद्ध : योजितः स जितो ज्ञेयः । -कल्पलता- समयसुन्दर पृ० २१० (ख) कल्पार्थ बोधिनी पृ० १५१ । (ग) कल्पद्र म कलिका पृ० १५२ । २६५. सो एव जिप्पमाणो विहुरो अह नरवई विचितेइ । किं मन्ने एस चक्की ? जह दाणि दुब्बलो अहयं ।। -आवश्यक भाष्य गा० ३३ (ख) ताहे सो एवं जिन्वमाणो विधुरो अह णरवती विचितेति किं मन्ने एस चक्की जह दाणि दुब्बलो अहयं, तस्सेवं संकप्पे देवता आउहं देंति डंडरयणं, ताहे सो तेण गहितेण धावति ।। -आवश्यक चूणि० २१० (ग) क्रोधान्धेन तदा दध्ये, कतुमस्य पराजयम् । चक्रमुत्कृत्तनिशेषद्विषच्चक्रं निधीशिना ॥ आध्यानमात्रमेत्याराद् अदः कृत्वा प्रदक्षिणाम् । अवध्यस्यास्य पर्यन्तं तस्थौ मन्दीकृतातपम् ।। -महापुराण, पर्व ३६, श्लो० ६५-६६ भा० २ पृ० २०५ २६६. एवं विमृशतस्तक्षशिलाभतु रुपेत्य तत् । चक्र प्रदक्षिणां चक्रमन्तेवासी गुरोरिव ।। न चक्र चक्रिणः शक्तं, सामान्येऽपि स्वगोत्रजे । विशेषस्तु चरमशरीरे नरि तादृशे ॥ -त्रिषष्ठि० १'५७२२१७२३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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