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तीर्थकर जीवन
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नमन करने की बात स्मृति में आते ही उनके चरण एकान्त शान्त कानन में ही स्तब्ध हो गये, असन्तोष पर विजय पाने वाले बाहबली अस्मिता से पराजित हो गये । एक वर्ष तक हिमालय की तरह अडोल ध्यान-मुद्रा में अवस्थित रहने पर भी केवल ज्ञान का दिव्य आलोक प्राप्त नहीं हो सका । शरीर पर लताएँ चढ़ गई, पक्षियों ने घौंसले बना लिये, पैर वल्मीकों (बाँबियों ) से वेष्टित हो गए, तथापि सफलता नहीं मिली ।२१ बाहुबली को केवलज्ञान
एक वर्ष के पश्चात् भगवान् श्री ऋषभदेव ने बाहुबली में अन्तर्योति जगाने के लिए ब्राह्मी और सुन्दरी को प्रेषित किया।
२७१. पच्छा बाहुबली चितेति-अहं कि तायाणं पासं वच्चामि ? इहं चेव
अच्छामि जाव केवलणाणं उप्पज्जति । एवं सो पडिमं ठितो पव्वयसिहरो । सामी जाणति तहवि ण पत्थवेति, अमूढलक्खा तित्थगरा। ताहे संवच्छरं अच्छति काउस्सग्गेणं वल्लीविताणेण वेढितो पादा य वम्मिएण ।
--आवश्यक चूणि-पृ० २१० (ख) बाहुबली विचितेइ-तायसमीवे भाउणो मे लघुतरा
समुप्पण्णणाणातिसया ते किह निरतिसओ पेच्छामि ? एत्थेव ताव अच्छामि जाव केवलनाणं समुप्पज्जति, एवं सो पडिम ठिओ, ठिओ माणपव्वयसिहरे, जाणइ सामी तहवि न पट्टवेइ, अमूढलक्खा तित्थयरा, ताहे संवच्छरं अच्छइ काउस्सग्गेण, वल्लीवितागणं वेढिओ पाया य वम्मीयनिग्गएहि भुयंगेहि ।
-आवश्यक मलयगिरि वृत्ति० प० २३२।१ (ग) शरीरमधिरूढस्तैलँबमान जंगमैः ।।
बभौ बाहबलिहिसहस्रमिव धारयन् ।। पादपर्य तवल्मीकविनिर्यातमहोरगैः ।
पादयोर्वेष्टयांचक्र स पादकटकैरिव ।। इत्थं स्थितस्य ध्यानेन तस्यैको वत्सरो ययौ। विनाऽऽहारं विहरतो वृषभस्वामिनो यथा ।
-त्रिषष्ठि० ११५७७६-से ७७८
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