Book Title: Rishabhdev Ek Parishilan
Author(s): Devendramuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 159
________________ १४२ ऋषभदेव : एक परिशीलन रह गये । बाहुबली की विरुदावली से भू-नभ गूंज उठा । भरत अपने दुष्कृत्य पर लज्जित हो गये ।२६७ ___ इस घटना से ऋद्ध हो बाहुबली ने भरत पर प्रहार करने के लिए अपनी प्रबल मुट्ठी उठाई । उसे देख लाखों कण्ठों से ये स्वर लहरियाँ फूट पड़ी-सम्राट भरत ने भूल की है, पर आप भूल न करें। लघु भाई के द्वारा बड़े भाई की हत्या अनुचित ही नहीं, अत्यन्त अनुचित है ।२६८ महान् पिता के पुत्र भी महान होते हैं । क्षमा कीजिये, क्षमा करने वाला कभी छोटा नहीं होता। बाहुबली का रोष कम हुआ । उठा हुआ हाथ भरत पर न पड़कर स्वयं के सिर पर गिरा । वे लुचन कर श्रमण बन गये ।२६९ राज्य को ठकराकर पिता के चरण-चिह्नों पर चल पड़े ।२७० सफलता नहीं मिली बाहुबली के पैर चलते-चलते रुक गये । वे पिता श्री के शरण में पहुँचने पर भी चरण में नहीं पहुँच सके । पूर्व दीक्षित लघु भ्राताओं को २६७. भरतस्तं तथा दृष्ट्वा , विचार्य स्वं कुकर्म च । बभूव न्यञ्चितग्रीवो, विविक्षुरिव मेदिनीम् ।। —त्रिषष्ठि १।४।७४६ २६८. अमर्षाच्चिन्तयित्वैवं सुनन्दानन्दनो दृढाम् । मुष्टिमुद्यम्य यमवद् भीषणः समधावत ॥ करीवोन्मुद्गरकरः कृतमुष्टिकरो द्र तम् । जगाम भरताधीशान्तिकं तक्षशिलापतिः । -त्रिषष्ठि० ११५७२७-७२८ २.६९. इत्युदित्वा महासत्त्वः सोऽग्रणीःशीघ्रकारिणाम् । तेनैव मुष्टिना मून, उद्दध्र तृणवत् कचान् ॥ -त्रिषष्ठि० ११५१७४० २७०. सोऽप्येवं चिन्तयामास प्रतिपन्नमहाव्रतः । कि तातपादपद्मान्तमहं गच्छामि सम्प्रति ? ।। –त्रिषष्ठि० ११५१७४२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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