Book Title: Rishabhdev Ek Parishilan
Author(s): Devendramuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 134
________________ तीर्थंकर जीवन ११७ वे मोक्षमार्ग के प्रवर्तक अवतार हैं । १११ जैन साहित्य में जिस ऋषभसेन को ज्येष्ठ गणधर कहा है, सम्भव है, वैदिक साहित्य में उसे ही मानसपुत्र और ज्येष्ठपुत्र अथर्वन कहा हो। उन्हें ही भगवान् ने समस्त विद्याओं में प्रधान ब्रह्मविद्या देकर लोक में अपना उत्तराधिकारी बनाया है । १९२ आद्य परिव्राजक : मरोचि भगवान् के केवल ज्ञान की तथा तीर्थ प्रवर्तन की सूचना प्राप्त होते ही, भगवान् के साथ जिन चार सहस्र व्यक्तियों ने प्रवृज्या ग्रहण की थी और जो क्षुधा पिपासा से पीड़ित होकर तापस आदि हो गये थे, उन तापसों में से कच्छ महाकच्छ को छोड़कर सभी भगवान् के पास आते हैं और ग्रार्हती प्रवज्या ग्रहण करते हैं । १९३ १९१. तमाहुर्वासुदेवांशं मोक्षधर्मविवक्षया । अवतीर्णं सुतशतं तस्यासीद् ब्रह्मपारगम् ॥ - श्रीमद्भागवत ११।२।१६ गीता प्रेस० गो० प्र० संस्करण १६२. ब्रह्मा देवानां प्रथमः सम्बभूव विश्वस्य कर्ता मुवनस्य गोप्ता । ब्रह्मविद्यां सर्वविद्याप्रतिष्ठामथर्वाय ज्येष्ठपुत्राय प्राह । - मुण्डकोपनिषद् १|१ (ख) स्वर्तितनयाय गातं विदद । - ऋग्वेद १, ६६, ४ कच्छसुकच्छवज्जा भगवओ सगासमागतूण भवणवतिवाणमंतर जोइसियवे माणियदेवाप्गिणं परिसं aण भगवओ सगासे पव्वइया । - आव०मि० मल० वृ० पृ० २३०।१ १६३. ते य तापसा भगवओ नाणमुप्पणं ति (ख) ते च कच्छमहाकच्छवर्ज राजन्यतापसाः । आगत्य स्वामिनः पार्श्व, दीक्षामाददिरे मुदा || Jain Education International त्रिषष्टि १।३।६५४ पृ० ८६ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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