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तृतीय अध्याय
तीर्थकर जीवन
अरिहन्त के पद पर
एक हजार वर्ष तक श्री ऋषभदेव शरीर से ममत्व रहित होकर वासनाओं का परित्याग कर, आत्म-आराधना, संयम-साधना और मनोमंथन करते रहे ।१५६ जब भगवान् अष्टम तप की साधना करते हुए पुरिमताल नगर के बाहर शकटमुख उद्यान में वटवृक्ष के नीचे
१५६. उसभे रणं अरहा कोसलिए एगं वाससहस्स
निच्चं वोसटकाये चियत्तदेहे जाव अप्पाणं भावमाणस्स एक्कं वाससहस्सं विइक्कतं ॥
___-कल्पसूत्र सू० १६६ पृ० ५८ पुण्य० (ख) सेणं भगवं वासावासवज्ज हेमन्तगिम्हासु गामे एगराईए
नगरे पंचराईए, ववगयहास-सोग-अरइ-रइ-भय-परित्तासे, णिम्ममे णिरहंकारे लहुभूए अगंथे वासी तत्थरणं अदु8 चंदणाणुलेवेणं अरत्त लेट्टमि कंचणम्मि अममे, इहलोए परलोए अपडिवद्ध जीविअ-मरणे निरवकंखे, संसारपारगामी कम्मसंघणिग्घायणट्ठाए अब्भुट्ठिए विहरइ । तस्स रणं भगवन्तस्स एएणं विहारेणं विहरमाणस्स एगे वाससहस्से विइक्कन्ते ।
--जम्बूद्वीप० सू० ४०-४१ पृ० ८४ अमो० तओ रणं जे से हेमन्ताणं चउत्थे मासे सत्तमे पक्खे फग्गुणबहुले तस्स णं फग्गुणबहुलस्स एक्कारसीपक्खेणं पुव्वण्हकालसमयंसि
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