Book Title: Rishabhdev Ek Parishilan
Author(s): Devendramuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 73
________________ ऋषभदेव : एक परिशीलन कुलकरों की संख्या कुलकरों की संख्या के सम्बन्ध में विभिन्न मत हैं । स्थानाङ्ग' समवायांग" भगवती, आवश्यकचूणि,६ आवश्यकनियुक्ति तथा त्रिषष्ठिशलाकापुरुषचरित्र में सात कुलकरों के नाम उपलब्ध होते हैं । पउमचरियं, महापुराण और सिद्धान्त संग्रह" में चौदह के तथा ४. स्थानांग सूत्र वृत्ति सू० ७६७ पत्र ५१८-१ । ५. समवायांग १५७ । (ख) जम्बुद्दीवे णं भंते ! दीवे भारहे वासे इमीसे ओसप्पिणीए समाए __ कइ कुलगरा होत्था ? गोयमा ! सत्त। -भगवती श० ५, उद्द० ६, सू० ३ आवश्यक चूणि पत्र १२६ । पढमेत्थविमलवाहण, चक्खुम जसमं चउत्थमभिचन्दे । तत्तो य पसेणइए, मरुदेवे चेव नाभी य ।। -आवश्यक नि० मल० वृ० गा० १५२ पृ० १५४ ८. त्रिषष्ठि० पर्व० १, स० २, श्लो० १४२-२०६।। ६. पउमचरियं उद्दे० ३, श्लो० ५०-५५ (१) सुमति, (२) प्रतिश्रु ति, (३) सीमङ्कर, (४) सीमन्धर, (५) क्षेमंकर, (६) क्षेमंधर, (७) विमलवाहन, (८) चक्षुष्मान्, (६) यशस्वी, (१०) अभिचन्द्र, (११) चन्द्राभ, (१२) प्रसेनजित्, (१३) मरुदेव, (१४) नाभि । आद्यः प्रतिश्रु तिः प्रोक्तः, द्वितीयः सन्मतिर्मतः । तृतीयः क्षेमकृन्नाम्ना, चतुर्थः क्षेमधृन्मनुः ॥ सीमकृत्पंचमो ज्ञेयः, षष्ठः सीमधृदिष्यते । ततो विमलवाहाङ्कश् चक्षुष्मानष्टमो मतः। यशस्वान्नवमस्तस्मान् नाभिचन्द्रोऽप्यनन्तरः ॥ चन्द्राभोऽस्मात्परं ज्ञेयो, मरुदेवस्ततः परम् । प्रसेनजित्परं तस्मा, नाभिराजश्चतुर्दशः ।। -महापुराण जिनसेनाचार्य, प्रथम भाग, तृतीय पर्व श्लो० २२६-२३२, पृ० ६६, ११. सिद्धान्त संग्रह पृष्ठ १८ १०. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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