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Ratnakarandaka-śrāvakācāra
सामयिकं प्रतिदिवसं यथावदप्यनलसेन चेतव्यम् । व्रतपञ्चकपरिपूरणकारणमवधानयुक्तेन ॥१०१॥
सामान्यार्थ - आलस्य से रहित और एकाग्रचित्त श्रावक के द्वारा हिंसात्याग आदि पाँचो व्रतों की पूर्ति का कारण सामयिक प्रतिदिन भी योग्य विधि के अनुसार बढ़ाया जाना चाहिये।
Overcoming laziness, and with deep focus, the householder should practise, in proper manner and on daily basis, the observance of the vow of periodic concentration (sāmayika) that is the sure means of accomplishing the five small vows (noninjury etc.).
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