Book Title: Ratnakarandaka Shravakachar
Author(s): Vijay K Jain
Publisher: Vikalp Printers

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Page 261
________________ अनुमतिरारम्भे वा परिग्रहे ऐहिकेषु कर्मसु वा । नास्ति खलु यस्य समधीरनुमतिविरतः स मन्तव्यः ॥ १४६ ॥ Verse 146 सामान्यार्थ - निश्चय से जिसकी (खेती आदि) आरम्भ में अथवा परिग्रह में अथवा इस लोक सम्बन्धी कार्यों में अनुमोदना नहीं है वह समान बुद्धि का धारक अनुमतिविरत श्रावक माना जाना चाहिये। Certainly, the serene householder who does not offer his approval or sanction in respect of occupations (like farming), material possessions, and worldly activities, is to be known as the anumativirata śravaka (tenth stage). 235

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