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Ratnakarandaka-śrāvakācāra
उच्चैर्गोत्रं प्रणते गो दानादुपासनात्पूजा। भक्तेः सुन्दररूपं स्तवनात्कीर्तिस्तपोनिधिषु ॥११५ ॥
सामान्यार्थ - तप के भंडार स्वरूप मुनियों को प्रणाम्-नमस्कार करने से उच्च गोत्र, आहारादि दान देने से भोग, प्रतिग्रहण (पड़गाहना आदि) करने से सम्मान, भक्ति करने से सुन्दर रूप और स्तुति करने से कीर्ति-सुयश प्राप्त किया जाता है।
The act of saluting the holy ascetics, repository of austerity, leads to birth in high or noble family, of giving food to prosperity and fullness, of attending upon them to respect and honour, of offering them devotion to beauty of person, and of praising their virtues to glory and renown.
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