Book Title: Ratnakarandaka Shravakachar
Author(s): Vijay K Jain
Publisher: Vikalp Printers

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Page 245
________________ निःश्रेयसमधिपन्नास्त्रैलोक्यशिखामणिश्रियं दधते । निष्किट्टिकालिकाच्छविचामीकरभासुरात्मानः ॥ १३४ ॥ Verse 134 सामान्यार्थ - कीट और कालिमा से रहित कान्ति वाले सुवर्ण के समान जिसका स्वरूप प्रकाशमान हो रहा है ऐसे मोक्ष को प्राप्त हुये सिद्ध परमेष्ठी तीन लोक के अग्रभाग पर चूड़ामणि की शोभा को धारण करते हैं। The liberated souls of the Siddha parameṣṭhi shine, as a crestjewel on the topmost part of the three worlds*, with the radiance of gold that has been rid of all external and internal impurities. * See page 10 ante for the description of Siddha sila, the abode of the liberated souls. 219

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