Book Title: Ratnakarandaka Shravakachar
Author(s): Vijay K Jain
Publisher: Vikalp Printers

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Page 247
________________ Section 7 Eleven Stages (pratimā) of the Householder's Conduct सप्तम परिच्छेद श्रावकपदानि देवैरेकादश देशितानि येषु खलु । स्वगुणाः पूर्वगुणैः सह संतिष्ठन्ते क्रमविवृद्धाः ॥ १३६ ॥ सामान्यार्थ - तीर्थंकर भगवान् के द्वारा श्रावक की ग्यारह प्रतिमाएँ कही गई हैं जिनमें निश्चय से अपनी प्रतिमा सम्बन्धी गुण पूर्व प्रतिमा सम्बन्धी गुणों के साथ क्रम से वृद्धि को प्राप्त होते हुये स्थित होते हैं। Lord Jina has stated that there are eleven stages (pratima) of the householder's conduct; for sure, each stage progressively adds its own attributes to those applicable to the preceding stages. 221

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