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मूलफलशाकशाखाकरीरकन्दप्रसूनबीजानि । नामानि योऽत्ति सोऽयं सचित्तविरतो दयामूर्तिः ॥ १४१ ॥
Verse 141
सामान्यार्थ - जो दया की मूर्ति होता हुआ अपक्व ( कच्चे ) मूल (मूली, गाजर आदि), फल (आम, अमरूद आदि), शाक (भाजी), शाखा (वृक्ष की नई कोपल), करीर (बांस का अंकुर), कन्द ( अंगीठा आदि), प्रसून (गोभी आदि के फूल) और बीज (गेहूँ, चना आदि) को नहीं खाता है वह सचित्तत्याग प्रतिमाधारी है।
As the embodiment of compassion, the householder who does not eat unripe ( and/or uncooked) roots, fruits, greens (leafy vegetables), stems (shoots), tendrils, bulbous root, flowery vegetables and seeds (grain), is the sacittatyāga śrāvaka (fifth stage).
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