Book Title: Ratnakarandaka Shravakachar
Author(s): Vijay K Jain
Publisher: Vikalp Printers

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Page 252
________________ Ratnakarandaka-śrāvakācāra पर्वदिनेषु चतुर्ध्वपि मासे मासे स्वशक्तिमनिगुह्य । प्रोषधनियमविधायी प्रणिधिपरः प्रोषधानशनः ॥१४० ॥ सामान्यार्थ - जो प्रत्येक मास में चारों ही पर्व के दिनों में अपनी शक्ति को न छिपाकर प्रोषध सम्बन्धी नियम को करता हुआ एकाग्रता में तत्पर रहता है वह प्रोषध प्रतिमाधारी है। The householder who each month observes, without concealing his strength, in the prescribed manner and with due concentration, the vow of fasting at regular intervals (proșadhopavāsa) on all the four specific days of the lunar month, is called the proșadha śrāvaka (fourth stage). 1 पाठान्तर : प्रणधिपरः ........................ 226

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