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Ratnakarandaka-śrāvakācāra
काले कल्पशतेऽपि च गते शिवानां न विक्रिया लक्ष्या । उत्पातोऽपि यदि स्यात् त्रिलोकसंभ्रान्तिकरणपटुः ॥ १३३ ॥
सामान्यार्थ - सैकड़ों कल्पकालों के बराबर काल बीतने पर भी और यदि तीनों लोकों में संभ्रान्त (खलबली) पैदा करने वाला उपद्रव हो तो भी सिद्धों में विकार दृष्टिगोचर नहीं होता है।
Even after the expiry of hundreds of worldly cycles of time (kalpakāla) (see pages 71-72 ante), or even if a terror that has the capability to disturb the three worlds strikes, still no alteration is observed in the condition (the divine attributes) of the liberated souls.
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