Book Title: Ratnakarandaka Shravakachar
Author(s): Vijay K Jain
Publisher: Vikalp Printers

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Page 211
________________ Verse 119 देवाधिदेवचरणे परिचरणं सर्वदुःखनिर्हरणम् । कामदुहि कामदाहिनि परिचिनुयादादृतो नित्यम् ॥११९ ॥ सामान्यार्थ - श्रावक को आदर से युक्त होकर प्रतिदिन मनोरथों को पूर्ण करने वाले और काम को भस्म करने वाले अरिहन्त देव के चरणों में समस्त दुःखों को दूर करने वाली पूजा करना चाहिए। In order to get rid of all kinds of distress, a householder should, with great reverence, worship daily the Holy Feet of the Tirthankara - wish-fulfilling, and destroyers of lustful cravings. EXPLANATORY NOTE सुप्तोत्थितेन सुमुखेन सुमंगलाय । द्रष्टव्यमस्ति यदि मंगलमेव वस्तु ॥ अन्येन किं तदिह नाथ ! तवैव वक्त्रम् । त्रैलोक्यमंगलनिकेतनमीक्षणीयम् ॥१९॥ - भोज राजा कृत चतुर्विंशति तीर्थंकर जिनस्तवनम्, भूपालचतुर्विंशतिका For a noble householder seeking blessedness, if anything that is worth looking at, first thing as he gets up in the morning, O Lord Rşabhanātha, he should only look at your pious face, the storehouse of all propitiousness that exists in the three worlds. Is there need for any other object? Ācārya Samantabhadra's Svayambhūstotra: न पूजयार्थस्त्वयि वीतरागे न निन्दया नाथ विवान्तवैरे । तथापि ते पुण्यगुणस्मृतिर्नः पुनाति चित्तं दुरिताञ्जनेभ्यः ॥ (१२-२-५७) ........................ 185

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