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स्नेहं वैरं सङ्गं परिग्रहं चापहाय शुद्धमनाः । स्वजनं परिजनमपि च क्षान्त्वा क्षमयेत्प्रियैर्वचनैः ॥ १२४ ॥
Verse 124
सामान्यार्थ - (समाधिमरण को धारण करने वाला पुरुष) स्नेह (प्रीति), वैर (द्वेष), ममत्वभाव और परिग्रह को छोड़कर, स्वच्छ हृदय होता हुआ, मधुर वचनों से अपने कुटुम्बीजन तथा परिजन दोनों से अपने आप को क्षमा करावे और दोनों को क्षमा करे।
The person observing the vow of sallekhana should, giving up fondness, aversion, infatuation and worldly possessions, seek with pure heart and sweet words forgiveness from his kinsmen and attendants, and also grant them forgiveness.
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