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Verse 114
गृहकर्मणापि निचितं कर्म विमाटि खलु गृहविमुक्तानाम् । अतिथीनां प्रतिपूजा रुधिरमलं धावते वारि ॥११४ ॥
सामान्यार्थ - निश्चय से जिस प्रकार जल खून को धो देता है उसी प्रकार गृह-रहित निर्ग्रन्थ मुनियों (अतिथि) के लिये दिया हुआ दान गृहस्थी सम्बन्धी कार्यों से उपार्जित अथवा सुदृढ़ कर्म को नष्ट कर देता है।
Just as water, for sure, washes away blood, it is certain that giving of food (āhāra) to homeless (free from all external and internal attachments) saints (called atithi, as they arrive without prior notice) washes away the heap of karmas that the laities amass routinely in performance of household chores.
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