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Ratnakarandaka-śrāvakācāra
पञ्चानां पापानामलंक्रियारम्भगन्धपुष्पाणाम् । स्नानाञ्जननस्यानामुपवासे परिहृतिं कुर्य्यात् ॥१०७ ॥
सामान्यार्थ - उपवास के दिन पाँचों पापों का, अलंकार धारण करना, खेती आदि का आरम्भ करना, चन्दन आदि सुगन्धित पदार्थों का लेप करना, पुष्पमालाएँ धारण करना या पुष्पों को सूंघना, स्नान करना, अञ्जन-काजल, सुरमा आदि लगाना तथा नाक से नास आदि का सूंघना, इन सब का परित्याग करना चाहिये।
On the day of fasting, the householder should refrain from committing the five demerits (himsā etc.), ornamentation, worldly occupations, use of fragrances like sandalwood paste and flowers, bathing, and also use of collyrium, and snuff.
EXPLANATORY NOTE
Acārya Amrtacandra's Purusārthasiddhyupāya:
श्रित्वा विविक्तवसतिं समस्तसावद्ययोगमपनीय । सर्वेन्द्रियार्थविरतः कायमनोवचनगुप्तिभिस्तिष्ठेत् ॥ १५३ ॥ One should retreat to a secluded place, renounce all sinful activities, abstain from indulgence in all sense-objects, and observe proper restraint over body, mind, and speech.
__Jain, Vijay K. (2012), “Shri Amritachandra Suri's Purusārthasiddhyupāya", p.99.
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