Book Title: Rag Virag Author(s): Bhadraguptasuri Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba View full book textPage 8
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir राग-विराग सदियों से, जुग जुग से चला आ रहा है राग और विराग का संघर्ष! दो अंतिमों के बीच से हर एक को गुजरना होता है। मानव जीवन अजीबोगरीब है मन के कुरुक्षेत्र पर प्रतिपल यह संग्राम चलता ही रहता है! राग आग बनकर झुलसा देता है तो विराग बाग बनकर जिंदगी को बहारों से भर देता है! सच ही तो कहा है: राग रहित मन है भवपार राग सहित मन ही संसार! विवेचनकार आचार्य श्री विजयभद्रगुप्तसूरिजी महाराज [श्री प्रियदर्शन] For Private And Personal Use OnlyPage Navigation
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