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ज्योत, जो सदा जलती रहेगी रास्ता है, पर इतनी जल्दी भी क्या है? उतरावस्था में आप संयम ले सकते
'उतरावस्था? महामन्त्री बादल की छाँव सी चंचल इस जिन्दगी का क्या भरोसा? पूर्वावस्था में जैसी संयमआराधना हो सकती है, वैसी उतरावस्था में नहीं हो सकती और जब मन ही उठ गया है भोगसुखों से, फिर देरी किस लिए?'
'आपकी बात सही है परन्तु...' वयोवृद्ध मंत्री की आँखों में आँसू भर आये! उनकी आवाज दर्द से छलक ने लगी। ___ आपके बिना यह राजमहल, यह नगर...यह राज्य...सभी कुछ सूना-सूना हो जायेगा। आपका विरह कैसे सहन होगा? आप इस कदर निष्ठुर मत बनिये।
'महामन्त्री, संयोग है वहाँ वियोग है ही 'संयोगा हि वियोगान्तः कोई मिलन शाश्वत् नहीं है। हर मिलन के पीछे विरह की कालिमा लगी हैं। संयोग सदाकालीन है ही नहीं। वैभव क्षणिक है | कामभोग दारूण विपाक वाले है!' कामगजेन्द्र अस्खलित रूप से बोल रहा था। महामन्त्री बार-बार उतरीय वस्त्र से अपनी आँखों को पोंछ रहे थे। दिशागजेन्द्र जमीन पर आँखें गड़ाए बैठा था। ___ 'महामन्त्री, दिशागजेन्द्र का राज्याभिषेक करना है। उसकी तैयारियाँ भी करनी होगी। अपने मित्र राज्यों में सूचना और निमंत्रण भी भेजना होगा। अब मैं विलम्ब करना नहीं चाहता हूँ!'
‘पर आप मेरी एक बात सुनिए, क्या महादेवी और रानी जिनमति ने सम्मति दे दी? आपके बिना वे दोनों...!'
'वे दोनों मेरे साथ संयम लेंगी। उन्होंने अपना निर्णय मुझे बता दिया है।' __ महामन्त्री स्तब्ध थे! कामगजेन्द्र के इस अचानक परिवर्तन ने उनके बरसों के अनुभव को झकझोर दिया था। उन्होंने राजा को प्रणाम किया और आज्ञा शिरोधार्य की। दिशागजेन्द्र के साथ कामगजेन्द्र भोजन के लिए राजमहल में गया और महामंत्री अपनी हवेली की ओर चल दिये।
अरुणाभ नगर ही नहीं बल्कि सारे राज्य में समाचार फैल गया। मित्र राजा और आज्ञांकित राजा अरुणाभ नगर में आने लगे | शुभ दिन और शुभ मुहूर्त में दिशागजेन्द्र का राज्याभिषेक कर दिया गया।
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