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ज्योत, जो सदा जलती रहेगी उसको अपनी ओर खींच लिया। दोनों पत्नियों का वार्तालाप मौन रहकर सुन रहे कामगजेन्द्र ने कहा :
'तुम दोनों का निर्णय मेरे साथ ही चारित्र ग्रहण करने का है तो फिर विलम्ब करना उचित नहीं होगा। राजकुमार दिशागजेन्द्र का राज्याभिषेक करके अपन श्रमण भगवन्त महावीर स्वामी के चरणों में पहुँच जायें ।' ___ 'आपकी बात सही है। राजकुमार के राज्याभिषेक के लिए आप महामन्त्री को बुलवाकर बातचीत करें। राजकुमार को भी तो अपना निर्णय बतलाना होगा।' प्रियंगुमति ने भद्रासन पर से खड़े होते हुए कहा। जिनमति भी प्रियंगुमति के साथ ही कामगजेन्द्र को प्रणाम करके आवश्यक कार्य हेतु बाहर निकल आयी | कामगजेन्द्र वहाँ से उठ कर मंत्रणालय में चला गया । द्वाररक्षक को बुलवाकर महामन्त्री को बुलाने भेज दिया, इतने में राजकुमार दिशागजेन्द्र वहीं पर आ पहुंचा। __ कामगजेन्द्र ने दिशागजेन्द्र को अपने पास बिठाया और अपना अभिप्राय उसे बताया। दिशागजेन्द्र की आँखें छलछला गयी। कामगजेन्द्र ने उसको प्यार से थपथपाते हुए सांत्वना दी और 'मानव जीवन की सफलता संयम से ही है, यह बात समझायी। दिशागजेन्द्र के आँसू बरबस बहे ही जा रहे थे।
महामन्त्री मंत्रणागृह में प्रवेश करके कामगजेन्द्र का अभिवादन कर, राजकुमार को प्रणाम कर आसन पर बैठे। 'मैं आपके सन्देश की राह देख ही रहा था कि आपका सन्देश मिला। आप कुशल तो हैं ना?' महामन्त्री ने बात-चीत प्रारम्भ किया।
'बड़ी प्रसन्नता है महामन्त्री! इन दिनों तो अन्तरात्मा की प्रसन्नता में डूबा जा रहा हूँ।'
'महामन्त्री जी, पिताजी ने संयम ग्रहण करने का निर्णय किया है।' दिशागजेन्द्र की आवाज भर्रा गयी। महामंत्री चौंक उठे। 'कामगजेन्द्र और संयममार्ग?' कामभोग यकायक संयम की राह पर? उनका मन कबूल नहीं करता है। वे कामगजेन्द्र की ओर देखते हैं।
'दिशागजेन्द्र की बात सही है। मैने संयम-जीवन ग्रहण करने का निर्णय किया है। परमात्मा महावीर स्वामी के आशीर्वाद मुझे मिले हैं। परमात्मा सीमंधर स्वामी की प्रेरणा मैंने पायी है।' 'महाराज, संयममार्ग श्रेष्ठ है, आत्मा की पूर्णता को पाने का यह एक ही
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