Book Title: Rag Virag
Author(s): Bhadraguptasuri
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 81
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ज्योत, जो सदा जलती रहेगी ७३ है। मैं सब जीवों को क्षमा देता हूँ। सभी मेरी तरफ मध्यस्थ बनें रहो। इस संसार में शत्रु मित्र बनते हैं और मित्र शत्रु बनते हैं । इसलिए मित्र - अमित्र का वर्गीकरण करना उचित नहीं है। स्वजन और परिजन सभी क्षमा दें। मैं सभी को क्षमा देता हूँ । स्वजन और परिजन, सभी मेरे लिए समान हैं । देवलोक में देवों को या तिर्यंचगति में पशुओं को मैंने दुःख दिया हो, नरक में नारक जीवों को और मनुष्यभव में मनुष्यों को मैंने दुःख दिया हो, तो उन सभी जीवों को मैं भावपूर्वक क्षमा देता हूँ। वे सारे जीव मुझे क्षमा करें। छह जीवनिकाय के जीवों को राग-द्वेष या मोह से, जाने-अनजाने में भी मैंने दुःख दिया हो तो वे सभी मुझे क्षमा देवें । मैं उनको क्षमा देता हूँ। महामुनि कामगजेन्द्र के चेहरे पर अपूर्व सौम्यता उभर आई । वे समतायोग में स्थिर बन गये। बाद में उन्होंने विशिष्ट ध्यानसाधना 'क्षपकश्रेणि' लगायी और घाती कर्मों का क्षय करके वे सर्वज्ञ - वीतराग बन गये । उसी समय अघाती कर्मों का भी क्षय हो गया और कामगजेन्द्र महामुनि देहमुक्त बने, उनका निर्वाण हुआ। उन्होंने परम पद मोक्ष प्राप्त किया । कामगजेन्द्र ने परमानन्द स्वरूप प्राप्त किया, यह समाचार साध्वी प्रियंगुमति और आर्या जिनमति को मिला। वे शोकाकुल व्याकुल हो उठी। 'अब हमें कभी उन महामुनि के दर्शन नहीं होंगे!' इस विचार ने दोनों को व्यथित कर दिया । सर्वज्ञ परमात्मा महावीर देव ने उन दोनों आर्याओं को अपने पास बुलाकर उनका उद्वेग दूर किया: हे आर्ये! तुम क्यों व्याकुल हो रही हो? तुम दोनों भी चरम शरीरी हो। इसी भव में सारे कर्मों का क्षय करके तुम मोक्ष-पद को प्राप्त करोगी। कामगजेन्द्र की आत्मा की ज्योति में तुम्हारी ज्योत मिल जायेगी । तुम्हारा आत्ममिलन शाश्वत होगा ।' परमात्मा की प्रेमभरी सांत्वना ने दोनों साध्वियों को प्रसन्नता दी। दोनों ने प्रभु को पँचाँग नमस्कार किया और अपने स्थान पर चली गयी। दोनों साध्वियों ने यथासमय अनशन किया और समूचे कर्मजाल को काटकर सिद्ध, बुद्ध, मुक्त और निरंजन - निराकार पद प्राप्त किया । भगवान महावीर स्वामी के समय में खेला गया यह राग और विराग का अद्भुत जीवन - खेल इस तरह पूर्ण होता है। राग पर विराग का विजय परमपद का विराट निःसीम साम्राज्य देता है । विराग पर राग का विजय दारुण नरक की यातनाएँ देता है । For Private And Personal Use Only

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