Book Title: Rag Virag
Author(s): Bhadraguptasuri
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 18
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जिनमति 'तूने प्रियंगुमति से मेरे बारे में बातें की होगी, नहीं?' 'उन्हें ऐसी बातें अच्छी लगती है । मैं किसी के विषय में अच्छी बातें करूँ तो वह बड़े प्यार से उन बातों को सुनती हैं। उनका यह महान गुण है । ' १० 'सचमुच प्रियंगुमति में रूप और गुण, सौन्दर्य और शील का सुभग समन्वय हुआ है, नहीं?' जिनमति की आँखें कल्याणी के चेहरे पर जम गयी । कल्याणी की निर्दोष आँखों में आनन्द झूम रहा था । जिनमति मन - सरोवर में एक विचार के कंकर ने लहरें पैदा कर दी चिंता की । 'इतनी प्यारी पवित्र हृदय वाली पत्नी जिसे मिली है, उस राजकुमार के हृदय में क्या मेरा स्थान बन पायेगा ? शायद वह स्वीकार भी कर लें तो युवराज्ञी को कितना अन्याय होगा? उसके दिल को कितनी गहरी चोट लगेगी ? प्रियंगुमति के सुख शांति एवं प्रसन्नतापूर्ण जीवन झरने को मैं कैसे सूखा सकती हूँ? नहीं, नहीं।' जिनमति के दिल में एक दर्दभरी टीस कसकने लगी । एक सुशीला सन्नारी के जीवन- महल को आग लगाकर उसकी राख पर अपने सुख और अपने जीवन का महल बनाना उसे मंजूर नहीं था। वह कभी प्रियंगुमति से कामगजेन्द्र को छीनने की बात सोच ही नहीं पाती थी । जिनमति के मुँह पर उदासी के आवर्त बिखर आये... और कल्याणी की निगाहों से वे छूप न सके । For Private And Personal Use Only उसने पूछा- 'क्यों, क्या बात है ? कोई गहरे सोच में... 'नहीं, कुछ भी नहीं।' जिनमति स्वस्थ बनने का प्रयत्न करने लगी । होठों पर मुस्कराहट लाकर कल्याणी के कंधों पर अपने हाथ रख दिये और उसकी आँखों में झाँकते हुए बोली : 'कल्याणी, मुझे युवराज्ञी के दर्शन करने ही होंगे। " कब आऊँ लेने के लिए?' 'जब उन देवी की इच्छा हो तब ।' जिनमति का हृदय प्रियंगुमति की तरफ स्नेह से छलक गया । कल्याणी को विदा करके जिनमति अपनी हवेली के झरोखे में जा पहुँची। उसने सामने झरोखे में नजर डाली पर वहाँ कोई नहीं था। झरोखा खाली था । आज जिनमति का हृदय भर आया था । उसकी झील सी गहरी आँखों में वेदना के आँसू पलकों के किनारे झूल रहे थे। वह झरोखे में रखे हुए एक आसन पर बैठ गई ।

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