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मैं धन्य बना!
____५९ बने हुए हैं, उन्होंने कामगजेन्द्र की आत्मा को प्रतिबुद्ध करने के लिये एक मायाजाल की रचना की । 'कामगजेन्द्र स्त्रीमुग्ध है, वह सौन्दर्य का चाहक है, यों जानकर उन दोनों मित्र देवों ने विद्याधर कुमारिकाओं का रूप किया और कामगजेन्द्र को वैताढ्य पर्वत की घाटी में ले आये। वहाँ बिन्दुमति नाम की राजकुमारी दिखायी : 'यह तेरे विरह से मर गयी है, ऐसा बताकर अग्निसंस्कार किया और उस चिता में वे दो कुमारियों का रूप धारण करने वाले देवों ने भी प्रवेश किया। यह देखकर कामगजेन्द्र भी जल मरने को तैयार हो गया पर मित्र देवों ने विद्याधर युगल का रूप बनाकर उसे जल मरने से रोका। फिर जब कामगजेन्द्र कुंड में उतरा तो उस कुंड को ही विमान बनाकर उसे यहाँ ले आये। उन्हीं दोनों मित्र देवों ने बालकों का रूप बनाकर 'यह किसी जंगली जानवर का बच्चा है, ऐसा मजाक किया और इसको यहाँ समवसरण में ले आये । 'सर्वज्ञ वीतराग के दर्शन करके यह सम्यकत्व पायेगा,' ऐसा समझ कर उसे मेरे सामने रखा।' ___ 'प्रभो, मित्र देवों ने ऐसा क्यों किया?' राजा ने प्रश्न किया । 'राजन्! गत जन्म में ये पाँच मित्र थे। उन पाँचों ने परस्पर निर्णय किया था एक दूसरे को प्रतिबुद्ध करने का । यह कामगजेन्द्र उन पाँचों में से एक मोहदत्त की आत्मा
___ मैं तो यह सब सुनकर भावविभोर हो उठा। भगवन्त की करुणामयी दृष्टि मेरे ऊपर गिरी। ___ 'कामगजेन्द्र! तू प्रतिबुद्ध बन । कर्मों की कुटिलता को समझ! कर्मों की जंग लगी जंजीरों को काटने के लिये कड़ा पुरुषार्थ करना होगा। तब ही मोक्षदशा प्राप्त होगी। संसार तो भीषण सागर है। उसको तैरना-पार करना आसान नहीं है। मन और इन्द्रियों की चंचलता की और कषायों की दुर्शयता को समझ | विषयोपभोग अन्ततोगत्वा दुःखदायी है। जिनवचन प्राप्त होना महा मुश्किल है। अतः सम्यगदर्शन को अंगीकार कर | यथाशक्ति विरतिधर्म को भी अंगीकार कर।' ___ 'प्रियंगु! परमात्मा की पावन वाणी मेरे अन्तस्तल को छू गयी। मेरी आँखों में खुशी के आँसू छलक उठे। मेरे रोम-रोम उल्लसित हो गये। हृदय में असीम आनन्द का उदधि उछलने लगा।' मैंने कहा।
'हे करुणानिधान । आपकी आज्ञा मुझे शिरोधार्य है। आपके वचन मैं स्वीकार करता हूँ।'
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