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मैं धन्य बना!
५८ परमात्मा के समक्ष अपने सारे प्रश्न रख दूंगा कि "मेरे जीवन में यह सब कुछ क्या हुआ जा रहा है।' __ हम जा पहुँचे समवसरण में, मुझे अपनी हथेली में रखकर वे दोनों बच्चे समवसरण में एक जगह पर बैठ गये। मैंने भगवन्त को देखा 'अहा। कितना सुन्दर रूप! कितनी विशाल काया? कितनी प्यारी और मधुर वाणी! समवसरण में देव-देवियाँ! देवेन्द्र और नरेन्द्र! स्त्री और पुरुष | सभी परमात्मा की वाणी सुनने में लीन बने थे। मुझे ले जाने वाले उन दोनों बच्चों ने कानाफूसी की 'अभी तो प्रश्न करना उचित नहीं होगा। अभी इस कीड़े को बताना उचित नहीं होगा। फिर जब गणधर भगवन्त प्रश्न करेंगे तब देखा जायेगा।' ऐसा कहकर वे दोनों परमात्मा की वाणी सुनने में दत्तचित बन गये। __परमात्मा ने आत्मा और कर्म का संबंध समझाया। कर्मों के बंध, उदय, क्षय, क्षयोपशम वगैरह समझाया। सभी मुग्ध बनकर सुन रहे थे। सभी ने परमात्मा के वचनों को स्वीकार किया। उस समय अवसर जानकर उन बच्चों ने मुझे सीमंधर स्वामी के पास रख दिया। सभी की निगाहें मेरे ऊपर लग गयी। देव-देवी, स्त्री-पुरूष सभी को आश्चर्य होने लगा। मैंने सीमंधर स्वामी को तीन प्रदक्षिणा देकर वन्दना की और भगवन्त के सामने खड़े होकर स्तुति की।
'हे जीवमात्र के बन्धु! संसार-समुद्र में नौका समान आप जयशील बनो। जन्म-जरा मृत्यु से मुक्त भगवन्त आप जयवंत बनो। हे पुरुषसिंह त्रिलोकव्यापी यशस्वी परमात्मन्! सर्वज्ञ सर्वदर्शी! आप विजयशील बनो! मोह को नष्ट करके सिद्धगति को प्राप्त करने वाले ओ जिनेन्द्र। आप जयशील बनो। हे प्रभो, मैं आपकी शरण अंगीकार करता हूँ।' इस तरह प्रार्थना करके मैं प्रभु के चरणों में झुक गया और बाद में अपने स्थान पर जा बैठा।
देवी! उस समय वहाँ बैठे हुए एक राजा ने नतमस्तक होकर भगवान से प्रश्न किया : हे प्रभो! यह मनुष्य है या दूसरा कोई? यह यहाँ पर आया कैसे? क्यों आया और इसे यहाँ कौन ले आया है? यह सब जानने की मुझे तीव्र उत्कंठा है, तो आप सारा रहस्य उद्घाटित करने की कृपा करें ।' यों कहकर वह राजा भगवंत के चरणों में झुका।
भगवंत ने करुणा करके मधुर सुरों में कहा : 'राजन्! इस जम्बूद्वीप में 'भरत' नाम का एक खंड है, वहाँ मध्य खंड में अरुणाभ नाम के नगर का यह कामगजेन्द्र नाम का राजकुमार है। इसके पूर्व जन्म के मित्र जो कि अभी देव
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