Book Title: Rag Virag
Author(s): Bhadraguptasuri
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 73
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६५ सही दिशा की ओर विरक्त आत्माओं के आनंद की अनुभूति विषयाक्त आत्माओं की कल्पना के बाहर की वस्तु है। विरक्ति में शुष्कता नहीं होती। शुष्कता में विरक्ति का टिकना मुश्किल है। राग का आनन्द और विराग का आनन्द! है दोनों आनन्द, पर दोनों के बीच जहर-अमृत का अन्तर होता है। ___ 'देवी, तुम्हारा संकल्प मेरे संकल्प को मजबूत बनाता है। तुम्हारे शब्दों की सहानुभूति मेरी विरक्ति को और ज्यादा पुष्ट कर रही है। अपन अरुणाभ नगर चलें। जिनमति को भी अपनी मनोकामना बतानी होगी। फिर युवराज दिशागजेन्द्र का राज्याभिषेक भी करना होगा और बाद में अपन संयम की राह पर प्रयाण करेंगे!' 'सही है आपका कहना! जिनमति आपके संकल्प को सुनकर ताज्जुब रह जायेगी! उज्जयिनी की राजकुमारी के चित्र पर मुग्ध बने आपको जब वह एक विरक्त व्यक्ति के रूप में पायेगी, आश्चर्य होगा ही! राजकुमारी पर मुग्ध बने आपको वह भगवान महावीर पर मुग्ध बने पायेगी तो उसका आश्चर्य दुगना हो जायेगा।' ___ 'सच है देवी, मानव के आकस्मिक परिवर्तनों से दुनिया को आश्चर्य होता ही है! जिनमति भी आश्चर्यान्वित होगी ही परन्तु...' कामगजेन्द्र बोलते-बोलते रुक गया। प्रियंगुमति समझ गई। 'स्वामिन, वह प्रसन्न होगी। आपके आन्तरिक व्यक्तित्व से वह भलीभाँति परिचित है। आप बाहर से रागी हैं और भीतर से विरागी हैं, यह बात हम दोनों अच्छी तरह जानती हैं। इस विषय में हमारी काफी चर्चा भी हुई है। अपन दोनों के संकल्पों का वह स्वागत करेगी और उसका अपना भी यही संकल्प होगा।' 'तो क्या वह भी संयमजीवन पसन्द करेगी?' 'अवश्य! जो आपको पसंद वही उसका जीवन ध्येय! वह आपको इतने गहरे से प्यार करती है कि अलग पसन्दगी का तो प्रश्न ही नहीं होता। 'तब तो कितना अच्छा! अपन सभी साथ ही आत्मा के अविनाशी सुखों को पायेंगे। सदाकाल के लिए ज्योत में ज्योत मिल जायेगी। कभी वियोग नहीं, कोई दूरी नही। __पलभर के लिए कामगजेन्द्र की कल्पना में जिनमति की सौम्य स्नेहभरी छवि तैर आई। उसका मन बोल उठा : 'वह भी तेरी राह स्वीकारेगी।' For Private And Personal Use Only

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