Book Title: Rag Virag
Author(s): Bhadraguptasuri
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 43
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३५ योगी या भोगी 'जी हाँ।' 'जिनु, वर्तमान हमेशा एक ही समय का होता है। एक समय की कुशलता में क्या खुश होने का? अनन्त भूतकाल का विचार कर, अनन्त भविष्य को देख। 'आज अभी ये सारे विचार करने के है?' जिनमति के चेहरे पर स्मित की दामिनी दमक उठी, पर जब उसने पाया कि कामगजेन्द्र की गम्भीरता अखण्ड है, तो उसने भी गंभीरता धारण कर ली। __'विचार करने से नहीं होते हैं जिनु, वे तो चले आते हैं दरिये में अचानक उठती लहरों जैसे, कभी कुछ देखकर, कुछ सुनकर, कुछ पढ़कर, सोचकर और कभी-कभी स्मृतियों द्वारा सहेज कर रखे संकलन से। कभी अच्छे तो कभी बुरे।' कामगजेन्द्र की आँखें जिनमति से उठकर वातायन के बाहर जा पहुँची। बाहर घना अन्धकार छाया था। उसने आँखें मूंद ली। ___ 'मैंने आज संध्या के दोनों रूप देखे। एक खिला हुआ और एक मुरझाया हुआ। एक था सौंदर्य की रंगबिरंगी साड़ियों में महकता हुआ तो दूसरा था रात की काली मखमली चादर में लिपटा हुआ। जिनु, क्या यह तन, यौवन, यह जीवन ऐसा ही नहीं है? खिली-खिली संध्या का सौन्दर्य कितना लुभावना था? पर उतना ही क्षणिक! इस जीवन का सौन्दर्य भी तो ऐसा ही अल्पकालीन है ना!' ___ जिनमति ने सम्मतिसूचक सिर हिलाया । कामगजेन्द्र जिनमति की आँखों में झाँकने लगा। जिनमति आज पहली ही बार कामगजेन्द्र के आँतर-जीवन की गहराइयों में प्रवेश कर रही थी। उसे पल भर लगा कि क्या यह मेरे पति कामगजेन्द्र बोल रहे हैं या फिर कोई योगी बोल रहा है?' कामगजेन्द्र ने अपना आसन थोड़ा सा खिसकाया। जिनमति ने भी अपना आसन कामगजेन्द्र के सन्निकट खिसकाया। 'जिन! आज मैने संध्या की अठखेलियों में यौवन को देखा। जीवन को देखा | मुझे तो क्षणिक लगे ये सारे रंग, एक दिन यह सब फीका पड़ जायेगा। यह सब माटी के मोल बिक जायेगा और जीवन की क्षितिज पर अँधेरे ही अँधेरे आ घिरेंगे। 'तीर्थंकरों ने भी ऐसा ही कहा हैं प्रिय!' जिनमति बोल उठी। 'आज मेरी आत्मसंवेदना बोल रही है। जिनु, पूर्णपुरुषों की वाणी का For Private And Personal Use Only

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