Book Title: Rag Virag
Author(s): Bhadraguptasuri
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 41
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दो देह एक प्राण ३३ 'थकान? भोजन बनाने में मुझे कितना आनन्द आता है, यह मैं कैसे बताऊँ? भला, अपने स्वामी के लिए भोजन बनाने में थकान कैसी ? पर भोजन तो अच्छा बना है न? उन्हें पसन्द आया न?' 'तू खुद ही उन्हें पसन्द आ गयी फिर तेरा भोजन तो कितना पसंद आता होगा! वे तो तेरे भोजन की प्रसंशा करते नहीं अघाते ।' जिनमति शरमा गयी... उसके चेहरे पर मुस्कराहट फैल गयी। जब से राजमहल में जिनमति आयी है, तब से सभी सूर्यास्त से पहले भोजन कर लेते हैं। महल के दास-दासी भी रात्रि भोजन नहीं करते। मांसाहार तो कदापि नहीं। जमीकन्द भी महल में आना बन्द हो गया। जिनमति की इच्छा से कामगजेन्द्र ने महल के ही भुमिभाग में एक सुन्दर जिनालय का निर्माण करवा दिया। जिनमति कामगजेन्द्र को अपने साथ ही परमात्मपूजा के लिए ले जाती है। प्रियंगुमति भी साथ में होती है। सभी भावविभोर होकर परमात्म-पूजन और स्तवन में लीन होते हैं। शाम को आरती भी सब मिलकर उतारते हैं। कामगजेन्द्र प्रियंगुमति एवं जिनमति के साथ इतना सुखोपभोग करता है कि जितना शायद इन्द्र भी रंभा एवं उर्वशी के साथ नहीं करता होगा ! For Private And Personal Use Only

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