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बिन्दुमती
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'बड़ी खुशी की बात है कुमार, तो अब हमारी बात आप ध्यान से सुनिये ।' "प्रियंगुमति गाढ़ निद्रा में थी । कामगजेन्द्र ने उसकी ओर देखा और आगन्तुक सुन्दरियों को इशारे से सामने पड़े हुए भद्रासनों पर बैठने को कहा । दोनों सुन्दरियों ने आसन ग्रहण किया। दोनों में से एक ने बात प्रारम्भ की। '
यहाँ से उत्तर दिशा में 'वैताढ्य' नाम का पर्वत है। उसके दो विभाग हैं। उत्तर श्रेणी और दक्षिण श्रेणी । उत्तर श्रेणी में सुन्दरानन्द मन्दिर नाम का नगर है। वहाँ के राजा का नाम है पृथ्वीसुन्दर और रानी का नाम है मेखला। उनकी एक अति सुन्दर कन्या है 'बिन्दुमति' । हम दोनों उस बिन्दुमति की अंतरंग सहेलियाँ हैं ।
बिन्दुमति रूप और गुणों से विद्याधरों की दुनिया में अद्वितीय है । परन्तु दुर्भाग्य से वह पुरुषद्वेषिणी बन गयी है। कोई भी पुरुष को देखना उसे पसन्द भी नहीं। माता-पिता की यह सबसे बड़ी चिन्ता बनी हुई है । एक दिन हम तीनों आकाशमार्ग से दक्षिण श्रेणी के एक उपवन में क्रीड़ा करने के लिए जा पहुँची। हम उपवन में क्रीड़ा कर रहे थे कि हमारे कानों में मधुर मंजुल गीतों के शब्द सुनाई दिये। हम खेलना भूलकर गीत में डूब गये । एक किन्नर और किन्नरी का युगल गीत गा रहा था। उस गीत का भाव कुछ ऐसा था : रूप में कामगजेन्द्र सा और लोक में महान यशस्वी कामगजेन्द्र है, पुण्यहीन मनुष्य तो उसको देख भी नहीं सकता है,' यह सुनकर बिन्दुमति ने मुझे कहा : पवनवेगा, तू जा उस किन्नर युगल के पास और यह कामगजेन्द्र कौन है और कहाँ रहता है? पूछकर आ ।'
मैंने जाकर उनसे पूछा तो वे एकदम झँझला उठे :
'अरी विद्याधर कन्ये, तूने कामगजेन्द्र को देखा तो नहीं पर क्या उसकी प्रशंसा, उसका यश भी नहीं सुना ?' किन्नरी ने मेरा उपहास किया। मैंने गुस्से में आकर उससे पूछा :
‘अरी, अब तू बहुत ज्यादा जानती है मुझे मालूम है, पर टालमटूल किये बिना कामगजेन्द्र के बारे में बतला दे ।' किन्नरी ने किन्नर की तरफ इशारा करके उससे पूछने को कहा। मैंने किन्नर से पूछा। उसने मुझे कहा :
‘कामगजेन्द्र अरुणाभनगर के राजा रणगजेन्द्र का पुत्र है । वह इतना भाग्यशाली है कि उसकी बातों को लेकर कई गीत, कई खंड काव्य और महाकाव्य बना-बना कर गायक लोग गाते हैं । हमारे किन्नरों की दुनिया में तो
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