Book Title: Rag Virag
Author(s): Bhadraguptasuri
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 40
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दो देह एक प्राण ३२ प्रियंगुमति ने कैसा वचन माँगा ? पति के विचारों से भी वह परिचित रहना चाहती थी। पति पर उसे तनिक भी संदेह न था, स्वयं की असुरक्षा का कोई भय नहीं था । वह चाहती थी स्वयं पति की छाया बनकर रहे। कामगजेन्द्र की इच्छानुसार वह अपना जीवन बना सके । कभी उसे योग्य सलाह भी दे सके । उसे उपयोगी भी बन सके । कामगजेन्द्र को पत्नी पर कितना विश्वास था कि अपने मन के विचार और सपने भी अपनी पत्नी को बता देने का वचन दे डाला। उसे प्रियंगु पर पूर्ण श्रद्धा थी कि मेरी किसी भी बात का वह दुरुपयोग नहीं करेगी। पति-पत्नी के बीच का ऐसा गहरा प्रेम, इतनी उत्कृष्ट श्रद्धा तो शायद कहीं देखने को भी नहीं मिलेगी । मात्र शरीर के रूप-रंग में और वैभव - सम्पत्ति की झिलमिलाहट में चकाचौन्ध बने युवावर्ग के लिये तो कल्पना के बाहर की है ये सारी बातें। पर ये कोई मात्र बातें नहीं हैं, शुष्क कल्पना और आदर्शों की उड़ाने नहीं हैं। मानव मन प्रेम की ऐसी ऊँची अवस्था को पा सकता है, ऐसी गहरी श्रद्धा को प्रकट कर सकता है, पर चाहिए निर्मल हृदय और गहरी समझ वाला मन । ‘नाथ! अब नगर में चलें, भोजन का समय हो गया है।' 'हाँ, सूर्य अस्ताचल की ओर भागा जा रहा है।' पश्चिम की ओर आँखें फेरकर कामगजेन्द्र ने कहा और दोनों लतामण्डप में से निकल कर उद्यान के बाहर रथ में जा बैठे। अश्व नगर की तरफ दौड़ने लगे। महल की अट्टालिका में खड़ी जिनमति ने रथ को आते देखा । वह शीघ्र नीचे आई । महल के भीतर दरवाजे पर खड़ी हो गयी। रथ में से उतरकर कामगजेन्द्र और प्रियंगुमति ने महल में प्रवेश किया। भीतरी द्वार पर खड़ी जिनमति ने दोनों का मुस्कराहट के साथ स्वागत किया। जिनमति का हाथ पकड़कर प्रियंगुमति महल के अन्दर चली गयी । आवश्यक कार्यों से निवृत होकर तीनों भोजन के लिए भोजनगृह में पहुँचे । प्रतिदिन क्रमानुसार दोनों रानियों ने पास बैठकर कामगजेन्द्र को भोजन करवाया। जिनमति के बनाये भोजन में इतनी मीठास होती थी कि कामगजेन्द्र प्रसन्न हो उठता। बाद में दोनों रानियाँ साथ बैठकर भोजन करती । भोजन करते-करते प्रियंगुमति ने जिनमति से पूछा - " जिनु, तू भोजन बनाते हुए ऊब नहीं जाती? तुझे थकान नहीं लगती ? हमारे साथ उद्यान में आई होती तो?' For Private And Personal Use Only

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