Book Title: Rag Virag
Author(s): Bhadraguptasuri
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 44
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 3६ योगी या भोगी अनुभव धन्य घड़ियों में होता है।' ‘पर वह अनुभव, वह आत्मसंवेदन होता है, अल्पकालीन ही!' 'अनुभव अल्पकालीन हो सकता है जिनु, पर उसका आस्वाद क्षणिक नहीं होता । अनुभव चला जाय पर उसकी स्मृति नहीं जाती। वह आस्वाद पुनः पुनः आत्मभाव की ओर ले जाता है।' 'ठीक, वैसे ही, पाँचों इन्द्रियों के विषयसुखों का अनुभव भी तो क्षणिक ही होता है ना? परन्तु उसका आस्वाद रह जाता है | वह आस्वाद ही आत्मा को पुनः पुनः विषयभोग में धकेल देता है।' जिनमति का स्वर माधुर्य से छलक उठा। 'यही तो संघर्ष है जिनु, कभी वह अनुभव जीत जाता है कभी यह अनुभव अपनी चादर तान देता है।' ___‘पर अधिकांश तो वैषयिक सुखों का अनुभव ही जीवात्मा को ज्यादा ललचाता है न? ___ 'हाँ बिल्कुल सही है। आत्मानुभव कभी-कभी हो आता है। पर वो कभीकभी होने वाला आत्मानुभव जीवात्मा को विषयोपभोग में निमग्न नहीं बनने देता। दरिये में डुबकी लगाना और बात है जिनु, और डूब जाना दूसरी बात है।' कामगजेन्द्र ने जिनमति को अपना दृष्टिकोण समझाया। ___ 'मुझे कभी वैषयिक सुख प्यारे लगते हैं, बड़े अच्छे लगते हैं पर कभी कुछ क्षणों में तो उनका आकर्षण बिल्कुल ही नहीं रहता। कैसा भी वैषयिक सुख मेरी अंतश्चेतना को नहीं खींच पाता।' 'मोहनीय कर्म की तीव्रता और मंदता राग-विराग में तीव्रता-मंदता लाती है। जिनमति ने कर्मसिद्धान्तों का अध्ययन गहराई से किया था, पर वह अपने ज्ञान का प्रदर्शन करने के लिए नहीं परन्तु कामगजेन्द्र की बात को हेतु द्वारा सिद्ध करने के लिए बोली। 'जिनु, आज भी मैंने मेरी स्मृतियों की सीप में अनुभव का मोती सहेजकर रखा है। वह रात! प्रियंगु उसके मायके गई थी। मुझे एकांत मिला था... आत्म-स्वरूप के चिंतन में ऐसी प्रसन्नता मिली थी कि बस...।' 'सारी रात जगे होंगे आप! 'हाँ, नींद आयी ही नहीं थी पर वह सचमुच आज भी मुझे प्रसन्नता दे जाता For Private And Personal Use Only

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